पेरिस में हुए ओलिंपिक खेलों के मेडल का रंग पांच महीने में ही उतरने लगा है। भारत की शूटर मनु भाकर सहित दुनिया के 100 से ज्यादा खिलाड़ियों ने मेडल का रंग उतरने की शिकायत की है। इंटरनेशनल ओलिंपिक कमेटी खिलाड़ियों को मेडल बदलकर देने को भी तैयार हो गया है,
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उन्होंने जूडो पैरालिंपिक में हिस्सा लेते हुए ब्रॉन्ज मेडल जीता था। कपिल का कहना है- वक्त के साथ इंसान का रंग उतर जाता है. ये तो मेडल ही है। मेरे भी मेडल का रंग उतरा है, चमका लिया है। दूसरे खिलाड़ियों की तरह फ्रांस नहीं भेजूंगा। मैंने जीवन में काफी संघर्ष किया है अब मेडल को एक दिन के लिए भी दूर नहीं करूंगा।
हाल ही में राष्ट्रपति ने उन्हें उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया है, 14 इंटरनेशनल मेडल जीत चुके हैं, लेकिन कपिल के लिए ये उपलब्धियां बेहद मुश्किल थीं। एक हादसे के बाद हर नए दिन के साथ कपिल की आंखों की रोशनी मद्धम होती जा रही है। भारी आर्थिक तंगी के बीच गुजरे की बचपन की यादें उन्हें कल की ही बात लगती है। क्या है कपिल की कहानी और मेडल का रंग फीका पड़ने पर भी उसे अपने से दूर भेजकर बदलवाना क्यों नहीं चाहते हैं…
पैरालिंपिक का वो ब्रॉन्ज मेडल, जिसका रंग फीका हो गया था।
पढ़िए कपिल की जिंदगी का सफरनामा उनकी ही जुबानी… मैं मध्य प्रदेश के सीहोर का रहने वाला हूं। अब मैं 24 साल का हूं। 9 साल तक मेरी जिंदगी भी सामान्य बच्चों की तरह थी। एकदम मस्त। 2009 में खेत में पानी का पंप चालू करने गया था। वहां की जमीन पर पानी फैला हुआ था, मैं अपनी मस्ती में दौड़ता–दौड़ता गया, जैसे ही पंप चालू करने के लिए स्विच दबाया तो जाेर से ब्लास्ट हुआ। मेरी अंगुलियां स्विच से चिपक गईं। पैर की अंगुलियां जल गईं। सिर में गहरे घाव हो गए। मैं तड़प रहा था।
मेरी मां ने मुझे बताया कि डॉक्टर्स कह रहे हैं इसका पूरा खून काला पड़ गया है। बचने की गुंजाइश न के बराबर है। हर महीने पूरे शरीर का खून बदलेगा। मैं 6 महीने तक कोमा में रहा। मेरी मां बस से रोज सीहोर से भोपाल आती थी। पापा सुबह खाना लेकर आते थे, शाम को मां साथ रूकती थी। 2 साल तक अस्पताल में भर्ती रहा।
बोर्ड पर लिखा साफ नहीं दिखा तो पता चला- आंखें खराब मैं क्लास में आगे की बैंच पर बैठता था क्योंकि पीछे से बोर्ड पर लिखा साफ दिखता नहीं था। एक बार सीहोर में आर्मी भर्ती रैली हुई थी। इसकी दौड़ में टॉप किया था। फिजिकल में पास हो गया था लेकिन मेडिकल में आंखों की समस्या दिखाकर निकाल दिया।
तब मैंने आंखों की जांच कराई तो डॉक्टर ने बताया कि आपकी आंख की नस में समस्या है। धीरे-धीरे आंखों की रौशनी घटती जाएगी। मैं पिछले 3 सालों में जापान, लंदन, जमर्नी के डॉक्टर्स को दिखा चुका हूं, पर कोई सोल्यूशन नहीं निकला है। 7 साल पहले 80 परसेंट विजिबलिटी थी आज 80 प्रतिशत आंखें खराब हो चुकी हैं। अब कहीं भी चलता हुआ टकरा जाता हूं।
पापा पहलवानी करते थे, मैंने जूडो खेलने का मन बनाया जब मैं ठीक होकर घर आया तो डॉक्टर्स ने कहा कि इसमें प्रोटीन, कैल्शियम की बहुत कमी है। मेरे शरीर में इतनी ताकत नहीं थी कि मैं अपने स्कूल के बस्ते का वजन भी उठा पाऊं। चलते- चलते चक्कर आ जाते थे। कभी तो ऐसी स्थिति हो जाती थी कि भाई उठाकर घर लेकर आता था। तब डॉक्टर ने डाइट प्लान बनाया।
फिजिकल स्ट्रेंथ के लिए रनिंग और एक्सरसाइज करने के लिए कहा। मुझे इसमें मजा आने लगा। पापा कभी पहलवानी करते थे। हादसे से पहले मैं भी कुश्ती करता था। तो जूडो खेल खेलने का मन बनाया।
केले खाने के पैसे नहीं थे, लोग कहते थे-काजू, बादाम खाओ मैं प्रैक्टिस करने के लिए जब सीहोर से भोपाल जाता था तो बस का किराया बचाने के लिए लिफ्ट लेकर जाता था। 7-8 साल रोज 50 किमी भोपाल जाना और 50 किमी वापस आने का सफर मैंने लिफ्ट लेकर किया, क्योंकि दोनो ओर का 100 रूपए किराया लगता था लेकिन घर की इनकम ही 300- 400 रूपए थी। मैं खुद 100 रूपए मांगने में घबराता था। लोग ताने मारते थे कि क्या कर रहे हो। मेहनत करते हो पर खाया भी करो।
हमारे पास गांव में हाइवे से सटा एक एकड़ का खेत था, यह खेत पूरे घर की आजीविका का बहुत बड़ा जरिया था। 2012 में मेरी दीदी की शादी तय हो गई थी और उससे पहले उनको स्वाइन फ्लू हो गया था। उनका बहुत लंबा इलाज चला। इसमें शादी के लिए बचाया सारा पैसा खत्म हो गया। शादी करने के लिए हाइवे के खेत को सिर्फ 5 लाख में गिरवी रखना पड़ा। हम तय समय में पैसा नहीं लौटा पाए तो वो जमीन हमारे हाथ से चली गई।
मिन्नतें की तो कभी हताशा में वीडियो बनाए, तब मदद मिली 2018 में सीनियर नेशनल जूडो में गोल्ड जीता। 2019 कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए लंदन जाने के लिए 1.20 लाख रूपए नहीं थे। तब सरकारों के सामने मिन्नतें करने के बाद मैं लंदन जा पाया था। भी गोल्ड जीता।
मैंने चंदा मांगकर टूर्नामेंट खेले हैं और देश के लिए मेडल जीते हैं। कोविड के बाद 2021 में मुझे एक इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए लंदन जाना था। उसके लिए 2.5 लाख रूपए नहीं थे। तब मैं इतना हताश हो गया था कि एक वीडियाे बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड करना पड़ा। तब मैंने कहा था कि मैं कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडलिस्ट हूं, लेकिन लंदन जाने के लिए 2.5 लाख रूपए नहीं हैं। उसके बाद लोगों ने कमेंट कर मुझसे क्यूआरकोड मांगा। सीहोर के कलेक्टर, एसपी, समाज के लोग आगे आए। आधे घंटे में 5 लाख का चंदा मुझे मिला था।
उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर बर्मिन्घम गेम्स में गोल्ड जीता। एशियन गेम्स में गोल्ड के बाद 50 लाख, पैरालिंपिक में मेडल के बाद मप्र सरकार ने 1 करोड़ रुपए देने की घोषणा की।
पैरालिंपिक में ब्रॉन्ज जीतने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कपिल से मुलाकात की थी।
पैरालिंपिक मेडल और अर्जुन अवाॅर्ड भगवान से मिलने जैसा मैं मिडिल क्लास परिवार से में आता हूं। पापा टैक्सी ड्राइवर थे, उससे पहले वे हम्माली का काम करते थे। तब एक बोरा ट्रक में उठाकर रखने के 2 रूपए मिलते थे। इस तरह दिन में कुछ रूपए कमा पाते थे।
मेरी मां दूसरों के घरों में मजदूरी करती थी। इन सब के बाद हमारा घर चलता था। अब जब अपने आपको वर्ल्ड नंबर वन जूडो प्लेयर, पहले ही ओलंपिक में मेडल जीतते, अर्जुन अवार्ड मिलते हुए देखता हूं तो ऐसा लगता है कि जैसा भगवान से मिल लिया।
अब लोग पहचानने लगे हैं, बड़े ब्रांड्स मेरे स्पांसर हैं ओलिंपिक मेडल के बाद दूसरा जीवन मिला है। पैरालिंपिक मेडल के बाद लोग पहचानने लगे हैं। किसी खिलाड़ी को कोई हैल्प चाहिए होती है तो मेरे एक फोन पर काम हो जाता है। कल का एक इंसीडेंट बताता हूं। अर्जुन अवाॅर्ड मिलने के बाद दिल्ली से भोपाल की फ्लाइट लेट हाे गई थी। तब वहां मप्र के कई नेता मिले। सब मुझे पहचान गए। गले लगे, बधाई दी।
मेडल जीतने के बाद मोदी जी ने बुलाया। रिलायंस फाउंडेशन का सदस्य हूं। बड़े– ब्रांड्स मेरे स्पांसर हैं। बहुत से ऐड कर चुका हूं। ये पहचान मुझे मेरे खेल, मेरी मेहनत और माता- पिता ने दिए है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में कपिल को अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया।
माता-पिता के लिए जीतूंगा 2028 का पैरालिंपिक गोल्ड अभी मेरा लक्ष्य 2028 पैरालिंपिक गोल्ड मेडल जितना है। माता- पिता ने जो मेरे लिए संघर्ष किया है, उनको सम्मान देने के लिए पैरालिंपिक गोल्ड जितना ही होगा। साथ ही जितना हो सके पैरा प्लेयर्स को सपोर्ट करता हूं। खेल में उनकी जिस तरह मदद कर सकता हूं, मदद करने की कोशिश करता हूं।
मेरी हिम्मत और हौसले का राज मेरे माता- पिता हैं। पिता रोज 200 बोरियां ट्रक में भरकर जब शाम को थके हाल घर आते थे तो उनकी हालत बहुत खराब होती थी, उनके घुटने में बहुत दर्द होता था। मैं उनके हाथ-पैरोंं की मालिश करता था। उनके घुटने पूरे खराब हो चुके हैं।
मेरे इलाज के वक्त मां ने मेरे लिए अपनी जान झोंक दी। वे मुझे यमराज के घर से खींच लाईं। उन्होंने कभी हार नहीं मानी तो मैं कैसे हार सकता हूं। ये दोनों ही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा हैं। साथ ही सिहोर के पनीर फैक्ट्री वाले किशन मोदी ने मेरी बहुत मदद की। जब भी पैसों की कमी आई उन्होंने मदद की। उन्होंने मेरे जैसे बहुत युवाओं के टैलेंट को मरने से बचाया है।
कपिल ने काफी संघर्षों के बाद पैरालिंपिक ब्रॉन्ज जीता और मेडल बाइट का लुत्फ लिया।
कई टैलेंटेड प्लेयर गार्ड की नौकरी कर रहे, चाय बेच रहे मैंने हर कदम पर अपने आपको प्रूफ किया है, लेकिन मेरे जैसे बहुत से खिलाड़ी हैं जो अभी गंभीर स्थिति में हैं। उनका टैलेंट धीरे- धीरे मर रहा है। कई विक्रम अवार्डी और इंटरनेशनल प्लेयर चाय बेच रहे हैं। वाशरूम के बाहर गार्ड की ड्यूटी कर रहे हैं।
मैंने खुद 6- 6 सेकंड में फाइट्स जीती हैं। ये वर्ल्ड रिकाॅर्ड रहा है। एक साल तक वर्ल्ड नंबर वन रहा। देश को 8 गोल्ड, 2 सिल्वर और 14 मेडल दिए हैं। इनमें से 10 टूर्नामेंट में जाने के लिए लोगों से पैसे उधार लिए थे। यानी 10 मेडल जीतने के बाद देश को मेरी काबिलियत का अहसास हुआ। ये सब देखकर दु:ख होता है।
कपिल अन्य प्लेयर्स को भी गेम के बारे में टिप्स देते हैं।
मेडल का रंग उतरता देखा तो बुरा लगा मैं जानता हूं कि वक्त के साथ इंसान का रंग फीका पड़ जाता है, ये तो फिर भी पैरालिंपिक का ब्रॉन्ज मेडल है। मेरे ब्रॉन्ज मेडल का कलर भी फीका हो गया था, दुनिया के 100 से ज्यादा खिलाड़ी मेडल का रंग उतरने की शिकायत इंटरनेशल ओलिंपिक कमेटी(आईओसी) से कर चुके हैं।
आईओसी ने भी कह दिया है कि मेडल बदल देंगे, लेकिन मैंने शिकायत नहीं की। उसे 25 रूपए में ठीक करवा लिया। कौन मेडल को फ्रांस भेजे और ठीक होकर आने का इंतजार करे। इतने संघर्ष से मिले मेडल को मैं एक दिन के लिए भी खुद से दूर नहीं कर सकता।
भोपाल की मोती मस्जिद के बाहर एक बाबा छप्पर में बाहर बैठे रहते हैं। उनको मेडल दिखाया ताे बोले- भाई हमारा दिन-रात का यही काम है, कुछ भी ले आओ कलर डाल देंगे। इसे चमकाने में 25 रूपए लगेंगे। उनको पता ही नहीं था कि ये क्या चीज है। कितनी मेहनत से इसे जीता है। उनकी सफाई की कीमत 25 ही थी लेकिन मैंने काम होने के बाद उन्हें 50 रूपए दिए।