Monday, January 20, 2025
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Home इस सुपरफास्ट मिसाइल के चलते कांपेंगे पाकिस्तान और चीन, भारत पर हमला करने से पहले 100 बार सोचेंगे

इस सुपरफास्ट मिसाइल के चलते कांपेंगे पाकिस्तान और चीन, भारत पर हमला करने से पहले 100 बार सोचेंगे

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नई दिल्ली: इस साल ब्रह्मोस मिसाइल के अगले वर्जन यानी ब्रह्मोस-2 हाइपरसोनिक मिसाइल को तेजी से तैयार किए जाने की उम्मीद है, जिससे चीन और पाकिस्तान में दुश्मन के ठिकाने पलक झपकते ही ध्वस्त हो जाएंगे। ब्रह्मोस-2 मिसाइल दुनिया की सबसे तेज मिसाइल होगी। इसकी रेंज 1,500 किलोमीटर तक होगी और इसकी गति ध्वनि की स्पीड से 7-8 गुना ज्यादा यानी करीब 9,000 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। ब्रह्मोस-2 को बनाने में दुनिया की सबसे तेज़ गति से चलने वाली मिसाइल रूसी जिरकॉन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। ब्रह्मोस-2 को जहाज, पनडुब्बी, विमान और जमीन आधारित मोबाइल लॉन्चर से लॉन्च किया जा सकता है। इसकी रेंज में दिल्ली से इस्लामाबाद और 1500 किमी की रेंज वाला चीन का कोई भी शहर आ सकता है। इस मिसाइल से सिर्फ 5 से 8 मिनट में टारगेट को तबाह किया जा सकता है। नए साल पर यह मिसाइल ट्रेंड हो रही है। जानते हैं हाइपरसोनिक मिसाइलों की पूरी एबीसीडी।

ऐसे तैयार हुई थी पहली ब्रह्मोस मिसाइल

भारत-रूस के साझा सहयोग से पहली ब्रह्मोस मिसाइल बनाई गई थी, जिसकी मारक क्षमता 290 किलोमीटर तक है। यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना ज्यादा) की गति के साथ विश्व की सबसे तेज क्रूज मिसाइल है। इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मस्कोवा नदी के नाम पर रखा गया है। यह दो चरणों वाली (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे में तरल रैमजेट प्रणोदक) मिसाइल है।

Brahmos-2 Missile

फायर एंड फॉरगेट के सिद्धांत पर काम करती है

ब्रह्मोस एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है जिसे धरती, हवा और समुद्र में बहुआयामी मिसाइल से सटीकता के साथ लॉन्च किया जा सकता है। यह खराब मौसम के बावजूद दिन और रात में मार कर सकती है। यह फायर एंड फॉरगेट यानी दागो और भूल जाओ के सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की जरूरत नहीं पड़ती है। अब ब्रह्मोस-2 मिसाइल हाइपरसोनिक मिसाइल है, जो स्पीड में बेजोड़ है। इसके 2027-28 तक तैनाती की उम्मीद है।

Brahmos-2 Missile

हाइपरसोनिक मिसाइलें क्या हैं? जानिए-खूबियां

हाइपरसोनिक मिसाइलों को ‘सुपरफास्ट’ मिसाइल भी कहा जाता है, जिनकी गति मैक 5 से 25 मैक के बीच होती है। यानी ये 8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से मार कर सकती हैं। इसकी तुलना में सशस्त्र बलों के साथ पहले से ही सेवा में मौजूद भारत-रूसी ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल की गति मैक 3 है और डीआरडीओ की विकसित निर्भय लैंड अटैक क्रूज मिसाइल मैक 0.9 पर उड़ती है। इसके विपरीत, पारंपरिक हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की गति मैक 3-4 होती है।

Brahmos-2 Missile

हाइपरसोनिक और क्रूज मिसाइलों में क्या फर्क है

बैलिस्टिक मिसाइलें भी हाइपरसोनिक गति से उड़ती हैं। वे क्रूज मिसाइलों से मौलिक रूप से अलग होती हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों को रॉकेट इंजन से चलाया जाता है जो उन्हें बाहरी अंतरिक्ष में ऊपर ले जाता है। जहां से उनके वारहेड एक वक्राकार उड़ान पथ पर चलते हुए पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करते हैं। दूसरी ओर, क्रूज मिसाइलें 90 डिग्री पर लॉन्च की जाती हैं। हालांकि, स्क्रैमजेट इंजन से संचालित होती हैं। ये वायुमंडल के भीतर बहुत कम ऊंचाई पर उड़ती हैं। मानव रहित विमान की तरह पृथ्वी की वक्रता का अनुसरण करती हैं। बैलिस्टिक मिसाइलों के विपरीत, क्रूज मिसाइलें पैंतरेबाजी कर सकती है और कुछ क्षेत्रों से बचने के लिए उनका मार्ग निर्धारित किया जा सकता है।

Brahmos-2 Missile

भारत में बन रही हाइपरसोनिक मिसाइलें कौन हैं

भारत में अभी 3 हाइपरसोनिक तकनीक वाली परियोजनाएं चल रही हैं। पहली ब्रह्मोस-2 हाइपरसोनिक मिसाइल है जिसे DRDO और रूस की NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया की ओर से संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है। इसकी रेंज 1,500 किलोमीटर और गति मैक 8 होने की उम्मीद है। यानी ये करीब 10 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मार कर सकती है। इसके अलावा, हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोस्ट्रेटर व्हीकल और हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन भी विकसित किया जा रहा है।

Brahmos-2 Missile

हाइपरसोनिक मिसाइलों को ले जाने वाला वाहन क्या है

डीआरडीओ हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोस्ट्रेटर व्हीकल (HSTVD) विकसित करने में भी लगा हुआ है, जो हाइपरसोनिक उड़ान के लिए एक मानव रहित स्क्रैमजेट-संचालित विमान है। यह हाइपरसोनिक और लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलों को ले जाने वाला एक वाहन होगा। इसका नागरिक कामों में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। जैसे कि कम लागत पर छोटे उपग्रहों का प्रक्षेपण किया जा सकेगा।

Brahmos-2 Missile

HGV-202F ग्लाइव व्हीकल अद्भुत आइडिया

तीसरी परियोजना एक निजी कंपनी की ओर से शुरू की जा रही है। एचजीवी-202एफ नामक इस हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन की कल्पना 5,500 किलोमीटर की प्रभावी रेंज और 300 किलोग्राम पेलोड के साथ मैक 20-21 तक की गति के साथ की गई है।

दो तरह की हाइपरसोनिक मिसाइलें होती हैं

हाइपरसोनिक मिसाइलें दो तरह की होती हैं-हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) और हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें। HGV को बैलिस्टिक मिसाइल या विमान के जरिए ज्यादा ऊंचाई पर ले जाया जाता है और फिर वॉरहेड की तरह छोड़ा जाता है। यह अपने लक्ष्य की ओर ग्लाइड करता है। क्रूज मिसाइलें अपनी पूरी उड़ान के दौरान हाइपरसोनिक गति बनाए रखने के लिए खुद के स्क्रैमजेट इंजन का उपयोग करती हैं। दोनों अपने उड़ान पथ और टर्मिनल गंतव्य को चार्ट करने के लिए ऑनबोर्ड मार्गदर्शन प्रणाली का उपयोग करते हैं।

हाइपरसोनिक तकनीक इस्तेमाल करने वाले देश कौन से हैं

दुनिया भर में अभी एक दर्जन से अधिक देश हाइपरसोनिक तकनीक पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, जिसमें हाइपरसोनिक यात्री विमान भी शामिल हैं। अब तक, अमेरिका और रूस के पास कई प्रकार के ऑपरेशनल हाइपरसोनिक हथियार हैं, जबकि चीन ने कई मॉडल पेश किए हैं और कई उड़ान परीक्षण किए हैं। बताया जाता है कि रूस ने यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध में हाइपरसोनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है।

परमाणु हथियार भी ले जा सकती है हाइपरसोनिक मिसाइलें

हाइपरसोनिक हथियारों को सेना के लिए अहम माना जाता है क्योंकि वे बेहद तेज, युद्ध में माहिर और लंबी दूरी तक मार करने वाले होते हैं। ये अपने साथ कई तरह के परमाणु या पारंपरिक हथियार ले जा सकते हैं। हाइपरसोनिक और बैलिस्टिक मिसाइलें दोनों ही विरोधियों के एंटी-एक्सेस और एरिया-डिनायल क्षेत्रों के बाहर तैनात किए जा सकते हैं। इनकी सटीकता, लंबी दूरी तय करने और ज्यादा स्पीड वाली मिसाइलों के इस्तेमाल ही शानदार बनाती हैं। ये लड़ाई की शुरुआत में ही दुश्मन के सुरक्षा कवच को भेद सकती है।

हाइपरसोनिक मिसाइलों को हराना क्यों मुश्किल है

हाइपरसोनिक मिसाइलें वायुमंडल के अंदर उस ऊंचाई से नीचे उड़ती हैं, जहां बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस आमतौर पर काम करते हैं। उनकी शानदार स्पीड और मोमेंटम के चलते ऐसी मिसाइलों का पता लगाना और उन्हें रोकना बेहद मुश्किल बना देता है।

जर्मनी से जुड़ा है हाइपरसोनिक तकनीक का इतिहास

हाइपरसोनिक तकनीक एडवांस्ड है। 1930 के दशक के अंत में जर्मनों ने सिलबरवोगेल (सिल्वर बर्ड) का आविष्कार किया था, जो एक लिक्विड-प्रोपेलेंट रॉकेट-पावर्ड सब-ऑर्बिटल बॉम्बर के लिए एक डिजाइन था। यह मैक 17-18 तक की गति तक पहुंच सकता था। हालांकि, यह महज एक आइडिया बनकर रह गया।

आम मिसाइलों से ज्यादा लागत है हाइपरसोनिक मिसाइलों की

कुछ पश्चिमी विश्लेषकों का सुझाव है कि हाइपरसोनिक मिसाइलों को खरीदने और तैनात करने में समान रेंज की बैलिस्टिक मिसाइलों की तुलना में लगभग एक तिहाई अधिक लागत आ सकती है, जो युद्धक सामग्री या हथियारों से भी लैस होते हैं।

दिनेश मिश्र

लेखक के बारे में

दिनेश मिश्र

दिनेश मिश्र, NBTऑनलाइन में असिस्टेंट एडिटर हैं। 2010 में दैनिक जागरण से पत्रकारिता की शुरुआत की। बीते 14 साल में अमर उजाला, राजस्थान पत्रिका और दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रिंट, टीवी और डिजिटल तीनों का अनुभव हासिल किया। पर्सनल फाइनेंस, पॉलिटिकल, इंटरनेशनल न्यूज, फीचर जैसी कैटेगरी में एक्सप्लेनर और प्रीमियम स्टोरीज करते रहे हैं, जो रीडर्स को सीधे कनेक्ट करती हैं।… और पढ़ें

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