हाइलाइट्स
कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को तेजस्वी यादव की राजनीति के लिए खतरा मानते हैं लालू यादव!कांग्रेस पर लालू यादव की दबाव की राजनीति, कन्हैया कुमार-पप्पू यादव हर बार होते गए किनारे!
पटना. बिहार में कहावत है कि – ऊपर से चकाचक… अंदर से मोकामा घाट… तात्पर्य यह कि बाहर-बाहर आपको सबकुछ अच्छा-अच्छा दिखेगा लेकिन, अंदर ही अंदर कुछ ना कुछ गड़बड़ी रहती है. ऐसा बिहार में महागठबंधन की सियासत को लेकर भी आजकल कहा जाने लगा है. कारण लालू यादव का कांग्रेस के प्रति जो रुख निकाल कर आया है वह है, दूसरा कांग्रेस ने जिस तलाक तेवर के साथ अपनी हिस्सेदारी मांगनी शुरू कर दी है वह भी है. राजनीति के जानकारों की नजर में कांग्रेस का रुख थोड़ा अटपटा सा जरूर लगता है, लेकिन बिहार की राजनीति के संदर्भ में उसकी जरूरत भी यही है. हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व इस तेवर को लेकर कितना आगे बढ़ती है यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन जिस तरह से लालू यादव की आरजेडी का कांग्रेस को लेकर रुख रहा है वह कांग्रेस पार्टी को कितने दिनों तक गंवारा रहेगा यह नहीं कहा जा सकता. खास तौर पर कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले दो बड़े नेता, जिनके कंधों पर कांग्रेस अपना भविष्य देखती है वह वह लालू यादव के टारगेट पर हैं. एक हैं पप्पू यादव तो दूसरे हैं कन्हैया कुमार.
सियासत के जानकार इसे सीधे-सीधे तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य से जोड़कर देखते हैं और राह का कांटा बता रहे हैं. ऐसा कांटा जिसे लालू यादव हर हाल में निकलना चाहते हैं. खास बात यह है कि इनमें एक यादव हैं तो दूसरे सवर्ण. पप्पू यादव मुसलमानों और यादवों में पॉपुलर हैं, तो कन्हैया कुमार और मुसलमानों और दलितों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. उनमें सवर्ण वोटों में भी कुछ सेंध लगा पाने का माद्दा है. कांग्रेस इन दोनों में ही अपना भविष्य देखती है, लेकिन ये दोनों ही लालू यादव की आंखों में खटकते हैं. अब आइए जानते हैं कि कैसे लालू यादव ने बीते दिनों अपने दांव से इन दोनों ही नेताओं को तेजस्वी यादव का रास्ता साफ करने के लिए किनारे कर दिया.
पप्पू यादव और कन्हैया कुमार का दांव कितना कारगर?
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, वर्ष 2024 लोकसभा चुनाव में ही बिहार कांग्रेस के दो उभरते चेहरे पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को लेकर लालू यादव ने ऐसा दांव चला की दोनों ही उम्मीदवारों का कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ना सपना ही रह गया. लालू यादव ने कन्हैया कुमार की दावेदारी वाली सीट बेगूसराय लेफ्ट को दे दी, जबकि पप्पू यादव के दावे वाली पूर्णिया सीट को बीमा भारती को मैदान में उतार दिया. कन्हैया कुमार तो कांग्रेस की नीति के तह किनारे हो गए, लेकिन पप्पू यादव अड़ गए और फिर पूर्णिया सीट से निर्दलीय ही लड़ भी गए. उन्होंने इसे अपनी प्रतिष्ठा की बात बना ली और वहां वह लालू यादव और तेजस्वी यादव की राजद पर भारी भी पड़ गए. यहां आरजेडी को परास्त करने में कामयाब भी रहे और जेडीयू के कद्दावर सांसद को भी मात देकर संसद भवन पहुंच गए. वहीं, कन्हैया कुमार उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय सीट से मनोज तिवारी के सामने लड़े और हार भी गए.
तेजस्वी की सियासत का रास्ता साप रखना चाहते लालू यादव
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, लालू यादव सियासत की बेहद गहरी समझ रखते हैं और किसी भी प्रकार से कन्हैया कुमार और पप्पू यादव का उभरने नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि यह दोनों ही ऐसे नेता हैं जो तेजस्वी यादव की राह का रोड़ा साबित हो सकते हैं. लालू यादव तेज तर्रार कन्हैया कुमार को बिहार में कतई घुसने नहीं देना चाहते. दरअसल, कन्हैया जिस प्रकार के वक्ता हैं वह अपना प्रभाव जनता के बीच जल्दी ही छोड़ जाते हैं. खास तौर पर बीजेपी विरोधी छवि मुसलमानों के बीच काफी लोकप्रियता दिलाता है. वहीं, मुसलमान वोटर लालू यादव की आरजेडी की राजनीति का सबसे बड़ा आधार भी है. ऐसे में वह बिल्कुल नहीं चाहते कि तेजस्वी यादव के मुकाबले या साथ-साथ कोई नेता अपना प्रभाव बढ़ाए.
कन्हैया कुमार ऐसा ‘कांटा’ जो राह में ही नहीं आंखों में भी खटकते हैं!
दूसरी ओर कन्हैया कुमार बेगूसराय से आते हैं और इसके आसपास के इलाके में कांग्रेस का प्रभाव भी रहा है. ऐसे में कन्हैया कुमार वहां से लड़ते तो बीजेपी केअच्छी टक्कर दे सकते थे. शायद वहां से उनकी जीत का रास्ता भी खुल जाता और वह संसद भी पहुंच सकते थे. एक समय ऐसा भी था जब कन्हैया कुमार को लेकर कांग्रेस बिहार में प्लान भी कर रही थी, लेकिन लालू यादव के अड़ के कारण कन्हैया कुमार को दिल्ली शिफ्ट होना ही पड़ा. कन्हैया कुमार को लेकर किस तरह से लालू यादव ने जीरो टॉलरेंस की अपनी नीति अपनाई है इसकी बानगी तब भी दिखी थी जब कन्हैया कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में अपनी यात्रा कर रहे थे. विभिन्न जिलों में जाकर वह भाषण दे रहे थे तब भी महागठबंधन में होते हुए भी तेजस्वी ने एक बार भी उनके साथ मंच साझा नहीं किया. यहां तक कि कन्हैया कुमार ने कई बार लालू यादव से नजदीकी बनाने की कोशिश भी की, लेकिन लालू यादव ने उन्हें बिहार की सियासत में बढ़ने नहीं दिया.
कन्हैया कुमार पर लालू परिवार का ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति
अब जब बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का अवसान काल चल रहा है तो उभरते नेताओं की होड़ भी है. चिराग पासवान, तेजस्वी यादव के बीच कन्हैया कुमार और पप्पू यादव का फेस जनता को सहज ही दिख जाता है. इस फेहरिस्त में बीजेपी के सम्राट चौधरी भी बड़ा नाम उभरे हैं. लेकिन, इन सब में वर्तमान में तेजस्वी यादव सबसे बड़े जनाधार वाले नेता जाने जाते हैं. लेकिन, सवाल उठता है कि अगर कांग्रेस कन्हैया कुमार को प्रोमोट करती है तो फिर क्या तेजस्वी के लिए खतरा नहीं होंगे? वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार पांडे कहते हैं कि लालू फंड फैमिली कभी नहीं चाहेगी कि तेजस्वी यादव किसी तरह के खतरे में पड़े. इसलिए, कन्हैया कुमार को आगे नहीं आने देना चाहते. यही कारण रहा की 2019 के लोकसभा चुनाव में जब कन्हैया कुमार लोफ्ट के टिकट पर बेगूसराय से चुनाव लड़े तो आरजेडी ने अपना मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतार दिया. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कन्हैया कुमार को बेगूसराय से नहीं लड़ने दिया और उन्हें दिल्ली शिफ्ट होना पड़ गया.
‘खतरों के खिलाड़ी’ हैं पप्पू यादव तो तेजस्वी के लिए खतरा भी!
कुछ ऐसा ही हाल पप्पू यादव का के साथ भी है. पप्पू यादव खतरों के खिलाड़ी कहे जाते हैं और यादव बिरादरी में उनकी बहुत पूछ है. वह सीमांचल और कोसी के इलाके में बड़ा जनाधार भी रखते हैं. इसकी बानगी आपको पूर्णिया लोकसभा चुनाव में राजद के खिलाफ खड़े होकर दिखा भी दी है. उन्हें हराने के लिए तेजस्वी यादव के पूरा जोर लगा देने के बाद भी जिस प्रकार से जीत हासिल की, वह भी काबिले गौर है. एक समय ऐसा भी आया था जब तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव को हराने के लिए एनडीए उम्मीदवार को जिताने की अपील तक कर दी थी. लेकिन, तेजस्वी यादव का दांव धराशायी हो गया और पप्पू यादव विजेता बनकर उभरे.
सियासत का हर हुनर के माहिर, कांग्रेस के लिए आ सकते हैं काम!
दरअसल, पप्पू यादव हर जाति वर्ग को साधने में माहिर हैं. पूर्णिया लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने मुस्लिम टोपी भी पहनने से कभी गुरेज नहीं किया तो सवर्ण हिंदुओं के घर-घर जाकर उनकी नाराजगी दूर की. यही वजह रही कि सवर्णों का बड़ा वोट चंक पप्पू यादव के साथ गया. इस इलाके में पप्पू यादव ही यादवों के नेता हैं, इसमें कोई दोराय नहीं है. वह आदिवासियों और दलितों के बीच भी जाते हैं और पूर्णिया सहित कोसी और सीमांचल क्षेत्र में लगातार अपनी धमक का विस्तार करते जा रहे हैं. खास बात यह है कि कांग्रेस भी उनको तवज्जो दे रही है. हाल के झारखंड चुनाव में उन्होंने जिस तरह से सक्रियता दिखाई वह कांग्रेस के कहने पर ही रहा.
सियासी राह के रोड़े तो हैं ही, आंखों में भी खटकते
अब सवाल यह है कि आने वाले समय में क्या कांग्रेस बिहार में अपने पांव पर खड़ी होगी? क्या कांग्रेस राजद के साये से निकलना भी चाह रही है? अगर ऐसा होगा तो क्या कन्हैया कुमार और पप्पू यादव इसके मेन फेस होंगे? क्या इन दोनों ही नेताओं का आगे आना लालू यादव और तेजस्वी यादव को मंजूर होगा? लालू यादव ने जिस तरह से राहुल गांधी की जगह ममता बनर्जी की ओर रुख किया है इससे हलचल तो जरूर है और इसपर कांग्रेस में मंथन भी है, लेकिन इन सभी सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में हैं कि क्या कांग्रेस इन दोनों में अपना भविष्य देखती भी है, या नहीं? लेकिन, इतना तो साफ है कि ये दोनों ही लालू यादव की आंखों में खटकते हैं और इन सियासी कांटों को वह कभी भी तेजस्वी की राह में नहीं आने देना चाहेंगे.
Tags: Bihar politics, Kanhaiya kumar, Lalu Prasad Yadav, Pappu Yadav
FIRST PUBLISHED :
December 18, 2024, 13:06 IST