उत्तर प्रदेश की राजनीति में गठबंधन की परंपरा को नया मोड़ देते हुए रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री डॉ. रामदास आठवले ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर अपनी पार्टी को एनडीए
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आठवले ने उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी को अपना दल, निषाद पार्टी और सुहेलदेव समाज पार्टी की तरह हिस्सेदारी देने की वकालत की।
आरपीआई का वोट बैंक साधने की रणनीति
डॉ. आठवले ने इस मुलाकात के दौरान स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाने वाली है, और उत्तर प्रदेश में बाबा साहेब को मानने वाले एक बड़े वर्ग को भाजपा के पक्ष में जोड़ने का काम कर सकती है। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा उन्हें गठबंधन में शामिल करती है, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को और बड़ी जीत हासिल होगी।
आरपीआई का विस्तार अभियान
आरपीआई के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष पवन भाई गुप्ता ने बताया कि पार्टी प्रदेश में अपना संगठन तेजी से मजबूत कर रही है। “मार्च 2025 तक हम सभी जिलों में अपनी कार्यकारिणी बना लेंगे और 2026 तक एक करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य तय किया है,” गुप्ता ने कहा। उन्होंने बताया कि पार्टी ‘पांव-पांव, गांव-गांव’ अभियान के तहत राज्य के हर गांव और कस्बे में अपने विचार पहुंचाएगी।
योगी का आश्वासन, आठवले का विश्वास
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मुलाकात के दौरान आठवले को सकारात्मक आश्वासन दिया। सूत्रों के अनुसार, भाजपा आरपीआई के साथ गठबंधन पर गंभीरता से विचार कर रही है, क्योंकि इससे दलित और बहुजन वर्ग के बीच पार्टी का जनाधार और मजबूत हो सकता है।
2027 की तैयारी: भाजपा को मिलेगा नया सहयोगी?
उत्तर प्रदेश में भाजपा पहले से ही गठबंधन की राजनीति के तहत अपना दल और निषाद पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर चल रही है। आरपीआई की एंट्री से भाजपा का गठबंधन मजबूत हो सकता है, खासकर दलित समुदाय में। इससे 2027 के चुनावी समीकरण बदलने की संभावना है।
क्या आरपीआई को मिलेगा उत्तर प्रदेश में स्थान?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आरपीआई का उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ा जनाधार नहीं है, लेकिन भाजपा की छत्रछाया में वह दलित वोट बैंक में सेंधमारी कर सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आरपीआई को सरकार में हिस्सेदारी देकर अपने गठबंधन को और मजबूत करती है या नहीं।