Friday, November 29, 2024
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तब 50 पैसे में मिलती थी संसद में भरपेट खाने की थाली, अब हो गई कितनी कीमत

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क्या आपको मालूम है कि संसद की कैंटीन में रोटी की कीमत कितनी है और कितने में मिलती है वेजेटेरियन थाली. संसद की कैंटीन 50 के दशक में शुरू हुई थी.तब से लेकर इसमें क्या बदलाव आ चुके हैं.

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संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है. हर सत्र के साथ हाउस में गहमागहमी बढ़ जाती है. संसद में आने वाले सांसदों और पत्रकारों और दर्शकों की संख्या भी बढ़ जाती है. क्या आपको मालूम है कि संसद की कैंटीन कैसी है. वहां वेज थाली कितने की मिलती है तो चपाती की कीमत कितनी है. 70 सालों में भारतीय संसद की कैंटीन भी पूरी बदल चुकी है.

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हाल ही में संसद की कैंटीन को और आधुनिक और सुसज्जित किया गया है. इसमें मिलेट के व्यंजनों की सूची भी मेनू में खासतौर पर शामिल की गई है. हालांकि संसद की कैंटीन की सब्सिडी करीब दो तीन साल पहले खत्म की जा चुकी है. पहले ये अपने बहुत सस्ते भोजन के लिए चर्चा में रहती थी. अब वहां सभी खाने के आइटम्स की कीमतें बढ़ जरूर चुकी हैं लेकिन तब भी ये बाहर के होटलों और रेस्तरां की तुलना में सस्ती ही कही जाएगी.

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संसद भवन परिसर में कैंटीन का प्रबंधन पहले उत्तरी रेलवे द्वारा किया जाता था. अब ये कैंटीन जनवरी 2021 से भारत पर्यटन विकास निगम (ITDC) द्वारा चलाई जा रही है. मूल्य निर्धारण संरचना नई दर सूची: नवीनतम मेनू भारी सब्सिडी वाले मूल्यों से अधिक बाजार-संरेखित दरों में बदलाव को दर्शाता है। उदाहरण के लिए: इस कैंटीन में एक चपाती की कीमत ₹3 है. चिकन बिरयानी और चिकन करी की कीमत ₹100 और ₹75 है. सैंडविच जैसी वस्तुओं की कीमत ₹3 से ₹6 तक है. शाकाहारी थाली में यहां ₹100 मिल जाती है

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संसद की कैंटीन का अपना इतिहास है. ये आजादी के बाद से ही सांसदों और संसद परिसर कर्मचारियों के साथ यहां आने वाले तमाम तरह के प्रतिनिधिमंडल और मेहमानों की आगवानी अपने बढ़िया खाने से करती रही है. क्या आपको मालूम है कि संसद की कैंटीन कैसी है. यहां रोज खाने की तैयारी कैसे होती है. (File Photo)

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जिस समय देश आजाद हुआ, तब संसद की कैंटीन काफी छोटी और परंपरागत थी. गैस के चूल्हे भी उसमें बाद में आए. पहले लोकसभा का स्टाफ ही कैंटीन चलाने के लिए मुकर्रर था. अगर पुराने सांसदों की मानें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अक्सर इस कैंटीन में खाने के लिए आते थे. हालांकि बाद के सालों में धीरे धीरे कैंटीन की व्यवस्था बदलती चली गई. 

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1950 और 1960 के दशक में संसद कैंटीन में भोजन की कीमतें बहुत ज्यादा सब्सिडी वाली थीं. तब एक साधारण शाकाहारी थाली की कीमत मात्र 50 पैसे थी, जिसमें भरपेट खा सकते थे. इसके अलावा चाय, नाश्ते और दूसरे खाने की कीमतें भी बहुत कम थीं. सांसदों और कर्मचारियों को सस्ते मूल्य पर भोजन उपलब्ध था.

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60 के दशक में संसद की कैंटीन में आमूलचूल बदलाव हुआ. ईंधन के तौर पर एलपीजी का इस्तेमाल शुरू हुआ. कैंटीन को कहीं ज्यादा पेशेवर और बेहतर बनाने के उद्देश्य लोकसभा सचिवालय द्वारा खुद कैंटीन संचालित करने की व्यवस्था बंद करके भारतीय रेलवे को कैंटीन चलाने का जिम्मा सौंपा गया.

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1968 से भारतीय रेलवे के उत्तरी जोन के आईआरसीटीसी ने कैंटीन का काम संभाल लिया. ये वो दौर था जब कैंटीन बहुत सस्ती थी और खान-पान के लिए तमाम आइटम वेजेटेरियन से लेकर नान वेज तक उपलब्ध रहते थे.

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संसद में एक मुख्य किचन है. यहां खाना बनकर तैयार होता है और संसद परिसर में बनाई गई पांच कैंटींस में उन्हें ले जाया जाता है. जहां खाना गर्म करने की पूरी व्यवस्था है. संसद की कैंटीन में भोजन की प्रक्रिया सुबह से ही शुरू हो जाती है. सुबह से पर्याप्त मात्रा में सब्जियां, दूध, मीट और अन्य जरूरी सामान कैंटीन में पहुंच जाते हैं. कैंटीन स्टाफ अपना काम शुरू कर देता है. कैंटीन में कंप्युटर प्रिंटर से लेकर फर्नीचर और चूल्हे से लेकर खाने और परोसने से जुड़ा हर सामान लोकसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराया जाता है.

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वर्ष 2008 के आसपास कई बार पाइप लाइंस में गैस लीक और उपकरणों में आ रही गड़बड़ी के चलते कैंटीन में ईंधन का पूरा सिस्टम ही बदल दिया गया. अब यहां खाना पूरी तरह बिजली के उपकरणों पर ही पकता और बनता है. कैंटीन की व्यवस्थाओं और क्वालिटी को देखने का काम सांसदों से जुड़ी एक समिति करती है. वो बीच बीच में इसके लिए दिशा निर्देश भी तय करती है. जब तक आईआरसीटीसी संसद की कैंटीन को चला रही थी, तब तक वो इसके लिए करीब 400 लोगों का स्टाफ रखती थी.

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जब संसद का सत्र चल रहा होता है तो कैंटीन में करीब 5000 लोगों का खाना पकता है. खाने को आमतौर पर 11 बजे तक तैयार कर दिया जाता है. फिर इसे मुख्य कैटीन से परिसर की दूसरी कैंटीन में ले जाया जाता है. पिछले साल तक कैंटीन में कुल 90 तरह के खानपान के आइटम उपलब्ध रहते थे. जिसमें ब्रेकफास्ट, लंच और शाम का नाश्ता होता है. लेकिन अब कैंटीन को भारतीय पर्यटन विकास निगम यानि आईटीडीसी द्वारा 27 जनवरी से संचालित किया जा रहा है. अब इसमें खाने की आइटमों की संख्या घटाकर 48 कर दी गई है. लेकिन ये ध्यान रखा जाएगा कि ये सभी आइटम बेहतर क्वालिटी और स्वाद वाले हों.

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कैंटीन के जरूरी खाद्य सामग्री अनाज, दलहन, तेल, घी, मसाले आदि की खरीदी केंद्रीय भंडार से की जाती है तो रोज सब्जी, फल संसद परिसर के करीब स्थित मदर डेयरी से आते हैं. मीट के लिए कैंटीन का तय वेंडर होता है. वहीं दूध दिल्ली दूध स्कीम के जरिए रोज वहां आता है. बाहर से आने वाली खाद्य सामानों की संसद परिसर के गेट पर कड़ी चेकिंग होती है. उसे एक्सरे मशीनों की जांच से निकलना होता है. कैंटीन में परोसी जाने वाली मिठाइयां पहले बाहर से टेंडर करके मंगाई जाती थीं.

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संसद की कैंटीन में सत्र के दौरान काफी गहमागहमी और लंबी लाइन देखने को मिल जाती है लेकिन आम दिनों में यहां भीड़ कम हो जाती है. आमतौर पर अब यहां सरकारों के मंत्री भी कैंटीन में कम नजर आते हैं. पुराने सांसद बताते हैं कि 80 के दशक तक यहां कैंटीन में मंत्री ही प्रधानमंत्री भी अक्सर नजर आ जाते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वर्ष 2014 में कैंटीन में खाना खाने गए. उससे पहले नेहरू के बारे में कहा जाता है कि वो यहां आया करते थे. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री नहीं थीं तो यहां नजर आ जाती थीं तो पीवी नरसिंहराव प्रधानमंत्री बनने से पहले सांसद और मंत्री रहने तक यहां नियमित दिख जाते थे.

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