नगर निगम परिसर में गौ उत्पाद स्टाल से गोबर से बने दीये और अन्य सामान खरीदते हुए महापौर डॉ.अजय सिंह।
‘आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं पर्यावरण संतुलन और औषधीय जगत के लिए भी गौवंश का बहुत महत्व है। गाय के दूध, गाय के घी, गाय के गोबर और गाय के मूत्र से अनेक लाइलाज बीमारियों का इलाज होता है। जिस घर में गौमूत्र से निर्मित फिनाइल का पोछा या गोबर की लिपाई हो
.
सहारनपुर में यूपी की एक ऐसी गौशाला है, जो अपने आपमें आत्मनिर्भर है। ये गौशाला खुद ही कमाई करती है और यहां के गौवंश को पालती है। निगम द्वारा बनाए गई ‘कान्हा उपवन गौशाला’ में गाय के गोबर से पानी में तैरने वाले दीये तैयार किए गए है। गौशाला में कई आइटम बनाए जाते हैं। इस बार दीपावली पर गाय के गोबर से बनाए गए आइटमों को बेचने के लिए निगम परिसर में ‘गौ उत्पाद स्टॉल’ बनाया गया है। नगर निगम द्वारा इस गौशाला को बनाया गया है।
‘कान्हा उपवन गौशाला’ में गाय के गोबर से पानी में तैरने वाले दीये, गोबर स्टिक, धूप बत्ती, ओउ्म, सतिया, बंदनवार, श्रीगणेश व माता लक्ष्मी, जैविक खाद, गौमूत्र से निर्मित गोनाइल (फिनाइल) और अन्य उत्पाद बनाए जा रहे हैं। पशु चिकित्सा कल्याण अधिकारी डॉ.संदीप मिश्रा ने निगम परिसर में एक स्टॉल लगाया गया।
स्टॉल में पानी में तैरते दीयों को के अलावा गोबर से बनाए गए अन्य उत्पादों को बिक्री के लिए रखा गया है। अधिकारी और पार्षद के अलावा आने-जाने वाले लोग भी इसे खरीद रहे हैं। स्टॉल में गोनाइल व जैविक खाद सहित अन्य उत्पादों की भी काफी बिक्री हो रही है। महापौर डॉ.अजय सिंह और नगरायुक्त संजय चौहान ने एक-एक हजार रुपए के उत्पाद खरीदे। डॉ.मिश्रा ने बताया कि पहले दिन ही 14 हजार रुपए से अधिक की बिक्री हुई है। निगम परिसर में ये स्टॉल 30 अक्तूबर तक लगेगा।
गोमूत्र से गोनाइल (फिनाइल) बनाने के लिए पांच श्रेणी से गुजरना पड़ता है। सबसे पहले गोमूत्र को स्टोर किया जाता है। उसके बाद गोमूत्र को 100 डिग्री तापमान पर उबालकर गोअर्क बनाया जाता है। इसके बाद गोअर्क को बीकर में इकट्ठा किया जाता है। बूंद-बूंद से शुद्ध गोअर्क तैयार हो जाता है। कुछ को बोतल में भर लिया जाता है। कुछ में पाम ऑयल और पानी मिलाकर गोनाइल बना लिया जाता है।
अब बात करते हैं..गोबर से बनने वाली वस्तुओं की। गोबर से सामान बनाने की प्रक्रिया बाद में शुरू होती है। सबसे पहले गोबर को सूखाया जाता है।
उसके बाद गोबर में मुल्तानी और लाल मिट्टी, लकड़ी और मेदा पाउडर मिलाया जाता है। उसके बाद उसे ग्राइंड किया जाता है। जब वह ग्राइड हो जाता है। उसे दीए बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। जिसके लिए एक मोटर वाली मशीन लगी हुई है। और हां, गोबर से ऑर्गेनिक खाद भी बनाई जाती है। केचुए से। जो 25 से 30 दिन में तैयार हो जाती है। गोबर से बनने वाले दीए की खास बात है, दीया आग में जलता नहीं है। उपयोग के बाद आप उसे तोड़कर पौधों में खाद के रूप में इस्तेमाल भी कर सकते हैं।