Haryana Chunav: चुनाव में रेवड़ी कल्चर अब जनता पर बोझ बनने लगा है. हरियाणा में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने जमकर वाद …अधिक पढ़ें
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जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. नतीजों के लिए आठ अक्तूबर का इंतजार है. अब महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव की बारी है. एक बार फिर नेता विकास के वादे-दावे करेंगे, लेकिन क्या सच में विकास हो पाएगा? बहुत मुश्किल है. क्यों मुश्किल है? क्योंकि सरकार के पास इसके लिए पैसे की कमी है. क्यों कमी है? क्योंकि सरकार को जो पैसा विकास पर खर्च करना चाहिए, वह चुनाव जीतने के मकसद से जनता को बांटने में खर्च कर देती है.
अपनों ने ही किया बेपर्दा
सरकारों को विकास को किनारे कर जनता को नकद पैसा देने का रोग लग गया है. यह रोग पूरा सिस्टम ही खराब कर रहा है. इसका इशारा हाल ही नितिन गड़करी ने भी किया. गड़करी, मोदी सरकार के उन मंत्रियों में हैं जो कभी-कभी सरकार का ही चेहरा बेपर्दा कर देते हैं. अभी हाल ही में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा लाड़की बहिण योजना घोषित कर दिए जाने के बाद उसके लिए अन्य सेक्टर में सब्सिडी का पैसा देना मुश्किल हो सकता है. उन्होंने सरकार को (चाहे वह किसी भी पार्टी की हो) ‘विषकन्या’ तक कह दिया. कहा कि सरकार जहां घुसती है, उसे डुबा देती है. उनका कहने का आशय था कि निवेशकों को सरकार के भरोसे या उसकी सब्सिडी के भरोसे नहीं रहना चाहिए.
आमदनी रुपैया तो खर्चा सवा रुपैया
गड़करी के बयान के बाद महाराष्ट्र सरकार ने सफाई दी कि उसके पास पूरा पैसा है. लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं, समझिए. 2019-20 में महाराष्ट्र सरकार को कुल राजस्व प्राप्ति हुई 283189.58 करोड़ रुपये और कुल राजस्व खर्च था 300305.21 करोड़ रुपये. 2020-21 में कुल राजस्व प्राप्ति: 269467.91 करोड़ रुपये और राजस्व खर्च: 310609.76 करोड़ रुपये. यानि, आमदनी रुपैया तो खर्चा सवा रुपैया. यह पांच साल पहले का हाल था. आज भी बहुत कुछ बदला नहीं है.
आज का हाल
महाराष्ट्र के वित्त विभाग ने साफ कहा है कि राजस्व घाटा और नई स्कीमों की घोषणा के चलते उसके खजाने पर दबाव काफी बढ़ गया है. 1781.06 करोड़ की लागत से स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बनाने के प्रस्ताव की फाइल पर वित्त विभाग ने यह लिखा. इसमें बताया गया कि साल 2024-25 में राजकोषीय घाटा 199125.87 करोड़ रुपया हो गया है. सरकार का राजस्व घाटा तीन फीसदी से ऊपर चला गया है.
महाराष्ट्र सरकार का कर्ज भी बीते दस साल में करीब ढाई गुणा बढ़ गया है. 2014 में जहां 2.94 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था, वहीं 2024 में 7.82 लाख करोड़ रुपये हो गया था.
‘लाड़की बहिण’ और ‘राज्यमाता-गौमाता’ को बराबर रकम!
इस आर्थिक हालात के बावजूद महाराष्ट्र सरकार ने चुनावी साल में मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिण योजना के तहत 46000 करोड़ रुपये महिलाओं को बांटने का फैसला किया. इस योजना के तहत 18 साल से ऊपर की पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये नकद दिए जाएंगे. चुनाव और नजदीक आने पर इतनी ही सब्सिडी गायों के लिए भी घोषित की गई है. पिछले हफ्ते ही महाराष्ट्र सरकार ने देसी गायों की नस्ल को बढ़ावा देने के लिए गौशाला में रहने वाली गायों के लिए 50 रुपया रोज, यानी 1500 रुपये प्रति महीना सब्सिडी देने की घोषणा की. साथ ही, देसी गाय को ‘राज्यमाता-गौमाता’ का दर्जा भी दिया.
‘रेवड़ी’ और ‘राजनीति’
लोकसभा चुनाव नतीजों में एनडीए का खराब हश्र देखने के बाद राज्य विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी एनडीए सरकार ने यह ऐलान किया. लोकसभा चुनाव में एनडीए को महाराष्ट्र की 48 में से केवल 17 सीटें मिलीं. बीजेपी को जहां 2019 के 23 की तुलना में महज नौ सीटें मिलीं, वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना को सात और अजित पवार की एनसीपी को एक सीट पर जीत मिली.
मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने ‘लाड़ली बहना’ नाम से महिलाओं को पैसे देने की स्कीम शुरू की थी. कहा गया कि इस स्कीम से 2023 में बीजेपी की सत्ता में वापसी में बड़ी मदद मिली. शायद इसीलिए महाराष्ट्र में भी सरकार ने राज्य की आर्थिक सेहत दांव पर लगा कर यह चाल चली हो.
ऐसा नहीं है कि केवल बीजेपी की सरकारें ही ‘रेवड़ी’ बांट रही हैं. कांग्रेस, आप, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जदयू, डीएमके हर पार्टी का यही हाल है.
‘रेवड़ी कल्चर’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राय
खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर ऐसे बयान देते रहे हैं जिनमें वह जनता को ‘मुफ्त की चीजें’ देने का विरोध करते हैं. उन्होंने साफ-साफ कहा है कि ‘रेवड़ी कल्चर’ देश के विकास के लिए हानिकारक है. इसके बावजूद खुद उनकी केंद्र की सरकार और उनकी पार्टी की राज्य सरकारें खुल कर ‘रेवड़ियां’ बांट रही हैं.
रेवड़ी वाली सबसे बड़ी स्कीम केंद्र सरकार चला रही है. लोगों को मुफ्त अनाज देकर. जब इसकी जरूरत नहीं रह गई, तब भी. रेवड़ियां बांट कर सरकारें जनता के लिए काम और काम का बढ़िया दाम दिलाने की व्यवस्था करने की मौलिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ती रही हैं.
जनकल्याण या वोट पाने की नीयत से दी गई रिश्वत?
पार्टियां ‘रेवड़ी’ को जनकल्याण के नाम पर चुनाव जीतने के लिए रिश्वत के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं. तभी तो टीवी, मोबाइल, टैबलेट जैसी चीजें मुफ्त में बांटी जा रही हैं. जिस हरियाणा में 5 अक्तूबर को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ, वहां भाजपा और कांग्रेस के घोषणापत्रों में किए गए वादों पर नजर डालिए:
हरियाणा में कांग्रेस का वादा
- 18 से 60 साल तक की महिला को दो-दो हजार रुपये हर महीना देंगे
- बुजुर्गों को छह हजार रुपये मासिक पेंशन देंगे
- सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) बहाल करेंगे
- हर घर में 300 यूनिट तक बिजली फ्री रहेगी
- खाना पकाने के लिए गैस सिलेंडर 500 रुपये में देंगे
- 25 लाख रुपये तक का इलाज मुफ्त
- सौ गज तक की जमीन और पक्का मकान देंगे
- न्यूततम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी मिलेगी
हरियाणा के मतदाताओं से बीजेपी का वादा
महिलाओं को 2100 रुपये प्रति महीना
24 फसलों की एमएसपी पर खरीद
गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों को 500 रुपये में गैस सिलेंडर
दो लाख सरकारी नौकरी
जबकि ऐसा नहीं है कि हरियाणा का आर्थिक हाल बड़ा मजबूत है. दस साल पहले जब पहली बार राज्य में भाजपा सरकार बनी थी तो सरकार पर 70,931 करोड़ रुपये का कर्ज था. यह अब तीन लाख करोड़ के पार जा चुका है.
ऐसा भी नहीं है कि कर्ज बढ़ रहा है तो आमदनी भी बढ़ रही है. राजस्व घाटा जो 2023-24 में 13,164 करोड़ रुपये था, उसके 2024-25 में 17,817.46 करोड़ पहुंच जाने का अनुमान है. ऐसे में सरकार किसी की आए, ‘रेवड़ियां’ अंतत: जनता को ही भारी पड़ने वाली हैं.
Tags: Assembly elections, Haryana election 2024
FIRST PUBLISHED :
October 5, 2024, 23:20 IST