Maulana Barkati’s nomination rejected: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों पर इस बार दुनिया भर की नजरें हैं. अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद यह राज्य में पहले चुनाव हैं. केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया था. साथ ही इस सरहदी सूबे को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था. जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को मतदान होंगे. जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद विधानसभा चुनाव कराये जा रहे हैं इसलिए यहां का सियासी माहौल खासा गर्म है.
जेल में बंद बरकती का नामांकन हुआ खारिज
चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करनी शुरू कर दी हैं. इस चुनाव में जेल में बंद मौलवी सरजन बरकती ने भी निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. मौलवी सरजन बरकती पर टेरर फंडिंग का आरोप है. कश्मीर में कई भारत विरोधी गतिविधियों में मौलवी सरजन बरकती को जिम्मेदार पाया गया है. उनके चुनाव प्रचार का जिम्मा उनकी बेटी ने संभाला था और नामांकन भी बेटी ने ही कराया था. सरजन बरकती ने मंगलवार को साउथ कश्मीर के शोपियां में अपने पैतृक गांव जैनपोरा से अपना नामांकन दाखिल किया. लेकिन अगले ही दिन चुनाव आयोग ने अलगाववादी नेता सरजन बरकती के नामांकन को खारिज कर दिया.
ये भी पढ़ें- Explainer: क्या होती हैं आईसीसी चेयरमैन की पॉवर्स, क्या है काम और कितनी मिलती है सैलरी
महबूबा मुफ्ती ने कारण सार्वजनिक करने को कहा
सरजन बरकती का नामांकन खारिज किए जाने के बाद कश्मीर में सियासी घमासान मचा गया है. जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और जेकेपीडीपी अध्यक्ष, महबूबा मुफ्ती ने चुनाव आयोग से सरजन बरकती के नामांकन को खारिज करने के कारणों को सार्वजनिक करने को कहा है. इस मामले पर महबूबा मुफ्ती ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उन्होंने अपने आधिकारिक एक्स-हैंडल पर लिखा, “जैनपोरा से सरजन बरकती के विधानसभा नामांकन फॉर्म की अस्वीकृति के बारे में सुनकर दुख हुआ. चुनाव आयुक्त को इस फैसले के कारणों को सार्वजनिक करना चाहिए. लोकतंत्र विचारों की लड़ाई है और इसमें सभी को भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए.”
बरकती पिछले साल हुए थे गिरफ्तार
लगभग 40 वर्ष के सरजन बरकती, हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद 2016 में दक्षिण कश्मीर, विशेषकर कुलगाम और शोपियां जिलों में विरोध रैलियों में केंद्रीय भूमिका में हुआ करते थे. विरोध प्रदर्शन तीन महीने से अधिक समय तक चला. उन्हें फंड जुटाने से जुड़ी कथित अनियमितताओं के सिलसिले में पिछले साल गिरफ्तार किया गया था. कुछ महीने बाद उनकी पत्नी को भी इसी मामले में गिरफ्तार कर लिया गया. सरजन बरकती की बेटी सुगरा ने उनकी ओर से नामांकन पत्र दाखिल किया. पर्चा दाखिल करने के लिए अपना गांव रेबन छोड़ने से पहले, सुगरा ने अपने पिता के लिए ग्रामीणों से समर्थन मांगा. इस मौके पर भावुक हो गईं सुगरा ने कुछ नारे भी लगाए. उन्होंने कहा, “मेरे पिता को आपके समर्थन की जरूरत है. शायद बाबा ये देख रहे होंगे. उन्हें दुख होगा कि उनके मासूम (बच्चे) अकेले हैं.”
ये भी पढ़ें- हरियाणा के नामी पहलवान परिवार में दरार! क्यों अलग-अलग सियासी पार्टियों में पहुंचीं फोगाट बहनें
उमामत-ए-इस्लामी से जुड़े थे बरकती
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार स्टेट जांच एजेंसी (एसआईए) ने अगस्त 2023 में सरजन बरकती को गिरफ्तार करते हुए कहा, “यह मामला क्राउड-फंडिंग के माध्यम से व्यापक धन जुटाने के अभियान को चलाने में बरकती की भागीदारी से संबंधित है. जिसके परिणामस्वरूप करोड़ों रुपये की धनराशि जमा गी गई. बाद में इन फंडों का दुरुपयोग किया गया, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग और कश्मीर घाटी के भीतर कट्टरवाद के प्रसार के लिए अघोषित संपत्ति का अधिग्रहण शामिल था. घाटी में एक घरेलू नाम बनने से पहले, सरजन बरकती काजी निसार द्वारा स्थापित एक सामाजिक-धार्मिक संगठन उमामत-ए-इस्लामी से जुड़े थे. जिसका नेतृत्व अब उनके बेटे काजी यासिर कर रहे हैं.
‘आजादी चाचा’ के रूप में हुए मशहूर
सरजन बरकती को 2016 के विरोध प्रदर्शन के दौरान नारे लगाने की अपनी अनूठी शैली के कारण दक्षिण कश्मीर में तुरंत शोहरत मिली. उन्हें ‘आजादी चाचा’ के रूप में जाना जाने लगा. उन्होंने कुलगाम और शोपियां में ज्यादातर रैलियों की अगुआई की. कश्मीर पुलिस ने 2016 में रैलियों के संबंध में उनके खिलाफ 30 मामले दर्ज किए थे. पुलिस ने कई बार उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन वह पुलिस से बच निकले. उन्हें अक्टूबर 2016 में गिरफ्तार किया गया था और सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था. दो साल बाद उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. एक बार फिर पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया. फिर उन्हें नवंबर 2022 में रिहा कर दिया गया.
ये भी पढ़ें- आखिर मेहंदी का रंग हाथों पर लाल ही क्यों चढ़ता है? हरा, नीला, पीला या गुलाबी क्यों नहीं?
जनता की सहानुभूति लेना चाहता था परिवार
कुछ महीने पहले लोकसभा चुनाव में जेल में बंद अलगाववादी नेता इंजीनियर राशिद ने बारामूला से जीत दर्ज की थी. इंजीनियर राशिद ने पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन को भारी वोटों से हराया था. उनकी जीत को देखते हुए सरजन बरकती के परिवार को भी उम्मीद थी कि जनता की सहानुभूति उनके पक्ष में होगी. राशिद के बेटे अबरार की तरह, जिनका चुनाव अभियान उनके पिता की रिहाई के इर्द-गिर्द घूमता रहा. सरजन बरकती की बेटी ने भी लोगों से अपनी पिता की रिहाई के लिए समर्थन देने को कहा था. लेकिन चुनाव आयोग ने उनका नामांकन खारिज कर घाटी में एक नई परंपरा की शुरुआत होने को रोकने की कोशिश की है.
कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे हैं चुनाव
पिछले चुनावों के बाद से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़कर 90 हो गई है, जिसमें जम्मू क्षेत्र को सात अतिरिक्त सीटों में से छह मिली हैं. जम्मू-कश्मीर में पिछले विधानसभा चुनाव दिसंबर, 2014 में हुए थे. उस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुआई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने 83 सीटों में से सबसे ज्यादा 28 सीटें जीती थीं. भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 25 सीटें मिली थीं. नेशनल कांफ्रेंस को 15 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस केवल 12 सीटों पर सिमट गई थी. मुफ्ती मोहम्मद सईद ने बीजेपी के साथ गठबंधन करके राज्य में सरकार बनाई थी.
Tags: 2024 Lok Sabha Elections, Article 370, Assembly elections, Jammu and kashmir
FIRST PUBLISHED :
August 29, 2024, 19:29 IST