Friday, November 29, 2024
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तरकुलहा देवी ने रोक ली थी मौत, 7 बार टूटा था फांसी का फंदा… सिहरा देगी गोरखपुर के इस क्रांतिकारी की दास्तान

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मां तरकुलहा देवी के अनन्य भक्त जिन्होंने कभी अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। अंग्रेजी हुकुमत उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाना चाहती थी लेकिन हर बार देवी मां मौत की राह में रोड़ा बन जाती थीं। कुल 7 बार अंग्रेज उन्हें फांसी पर लटकाने की कोशिश किए और बार बार फंदा टूट जाता था।

हाइलाइट्स

  • बंधु सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध के रूप में मोर्चा खोला
  • अंग्रेजों के जुल्म से भारत मां को आजाद कराने के लिए मैदान में उतर गए
  • बंधू सिंह को मुखबिरों की सूचना पर अंग्रेज सैनिकों ने धोखे से गिरफ्तार कर लिया
  • बंधु सिंह को फांसी दिए जाने के दौरान बार बार फंदा टूट जाता था
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तरकुलहा देवी ने रोक ली थी मौत, 7 बार टूटा था फांसी का फंदा… सिहरा देगी गोरखपुर के इस क्रांतिकारी की दास्तान

प्रमोद पाल, गोरखपुरः साल 1857 की प्रथम क्रांति में देश के कई युवाओं ने अपनी जान की आहुति दी थी। हर तरफ अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बज चुका था। मंगल पांडेय से शुरू हुई यह बगावत एक चिंगारी की तरह गोरक्ष नगरी की धरा तक पहुंची थी। यहां आजादी के मतवाले देवी मां के अनन्य भक्त बंधु सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ गोरिल्ला युद्ध के रूप में मोर्चा खोल दिया था। अंग्रेज उनसे इस कदर परेशान हो गए थे कि अंत में उन्हे धोखे से गिरफ्तार कर फांसी के फंदे पर लटकाना चाहा लेकिन मां तरकुलहा मौत की राह में रोड़ा बनकर खड़ी हो जातीं और हर बार फांसी का फंदा टूट जाता।

गोरखपुर से 25 किलोमीटर दूर चौरी-चौरा की क्रांतिकारी धरती पर स्थित देवीपुर कभी रियासत हुआ करता था। जहां अमर शहीद बंधू सिंह जैसे क्रांतिकारी युवा ने 1 मई 1833 में जन्म लिया। बंधु सिंह एक जमींदार परिवार से आते थे। देवीपुर के आसपास उनकी रियासत थी। परिवार में कुल 5 भाई थे। अंग्रेजी हुकूमत के समय व्यापार को लेकर अंग्रेजों का आवागमन इस क्षेत्र में होता था। अपने माता-पिता से अंग्रेजों के अत्याचार और गुलामी की बात बंधु सिंह लगातार सुनते थे, जिसकी वजह से उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत का भाव पैदा हो गया था। बंधु सिंह के वंशज टप्पू सिंह के अनुसार जब 1857 की क्रांति की अलख जगी तो बंधू सिंह ने भी मोर्चा संभाल लिया। वह देवी मां के अनन्य भक्त थे।

देवी को चढ़ाते थे रक्त

गांव से कुछ दूरी पर स्थित तालाब के किनारे एक तरकुल का का पेड़ था, जहां रोज वह देवी मां की पूजा किया करते थे। इस दौरान वह अपने शरीर का रक्त भी चढ़ाते थे। उस स्थान पर आज भी पिंडियां विद्यमान है। भव्य मंदिर भी बना हुआ है। तरकुल के पेड़ के नीचे पिंडी का वास और पूजा होने की वजह से इस स्थान का नाम भी तरकुलहा देवी पड़ गया। जहां दूर दराज से हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धार्मिक स्थलों के जीर्णोधार की कड़ी में इस स्थान को भी बजट देकर इसका सुंदरीकरण कराया है।

कई अंग्रेजों को उतारा मौत के घाट

कहा जाता है कि जब 1857 की क्रांति शुरू हुई तो बंधु सिंह भी अंग्रेजों के जुल्म से भारत मां को आजाद कराने के लिए मैदान में उतर गए। इस दौरान अपने कौशल और गोरिल्ला युद्ध में पारंगत होने के कारण कई अंग्रेज सैनिकों को मारकर मौत के घाट उतार दिया, इन ताबड़तोड़ घटनाओं के बाद अंग्रेज बेहद घबरा गए थे। धीरे-धीरे यह बात अंग्रेज अफसरों के कानों तक पहुंची। बंधू सिंह को मुखबिरों की सूचना पर अंग्रेज सैनिकों द्वारा धोखे से गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेज उनसे इस कदर चिढ़े हुए थे कि उन्हें फांसी की सजा देने का ऐलान कर दिया गया। 12 अगस्त 1858 के दिन अलीनगर चौराहे के पास स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी देने का निर्णय हुआ।

बार बार टूट जाता था फांसी का फंदा

प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार बताया जाता है कि उस दौरान जब-जब उन्हें फांसी के फंदे से लटकाया जाता, फंदा टूट जाता। ऐसा कुल सात बार हो चुका था। यह देखकर वहां उपस्थित अंग्रेजी हुकूमत के हुक्मरान भी अचंभित थे। उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हो क्या रहा? अंत में बार-बार की इस प्रताड़ना से परेशान बंधू सिंह ने खुद मां तरकुलहा देवी को याद किया और कहा कि “हे मां अब मुझे मुक्ति दें” आठवीं बार जब उन्हें फांसी के फंदे लटकाया गया तो उन्होंने प्राण छोड़ दिए और शहीद हो गए। हर वर्ष 12 अगस्त के दिन यहां आयोजन होता है,लोग इस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाते है। इस बार भी उनका 166 वां बलिदानी दिवस मनाया गया।

राघवेंद्र शुक्ला

लेखक के बारे में

राघवेंद्र शुक्ला

राघवेंद्र शुक्ल ने लिखने-पढ़ने की अपनी अभिरुचि के चलते पत्रकारिता का रास्ता चुना। नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में डिप्लोमा हासिल करने के बाद जुलाई 2017 में जनसत्ता में बतौर ट्रेनी सब एडिटर दाखिला हो गया। वहां के बाद नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की लखनऊ टीम का हिस्सा बन गए। यहां फिलहाल सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रड्यूसर के पद पर तैनाती है। देवरिया के रहने वाले हैं और शुरुआती पढ़ाई वहीं हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री है। साहित्यिक अभिरूचियां हैं। कविता-उपन्यास पढ़ना पसंद है। इतिहास के विषय पर बनी फिल्में देखने में दिलचस्पी है। थोड़ा-बहुत गीत-संगीत की दुनिया से भी वास्ता है।… और पढ़ें

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