Tuesday, February 25, 2025
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Sheikh Hasina: अगर ब्रिटेन ने नहीं दी शरण तो कब तक भारत में रहेंगी हसीना, यहां रहना क्यों बन सकता है समस्या?

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विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद में बयान दिया कि शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद भारत आने की अनुमति मांगी थी और शॉर्ट नोटिस पर भारत ने उनकी सुरक्षित यात्रा की व्यवस्था कर दी थी। इससे पहले उन्होंने मंगलवार को सर्वदलीय बैठक में कहा कि शेख हसीना सदमे में हैं। सरकार बात करने से पहले उन्हें कुछ समय दे रही है। वे भविष्य को लेकर खुद फैसला लेंगी। 

Sheikh Hasina: If Britain does not grant her asylum how long will she stay in India Why it is a problem?

Sheikh Hasina – फोटो : Amar Ujala

विस्तार

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मात्र 45 मिनट मिले थे शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ने के लिए। उनके देश छोड़ने के तुरंत बाद, प्रदर्शनकारियों ने उनके आधिकारिक आवास गणभवन पर धावा बोल दिया और परिसर में जमकर तोड़फोड़ और लूटपाट की। शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना सोमवार शाम को सी-130जे ट्रांसपोर्ट विमान से गाजियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर उतरीं। वह राजनीतिक शरण के लिए ब्रिटेन जाना चाहती थीं। लेकिन दुनियाभर में राजनीतिक शरण देने के लिए मशहूर यूके ने कुछ नियमों का हवाला देकर शरण देने को लेकर संशय बना रखा है। सूत्रों का कहना है कि जिस तरह से अमेरिका ने शेख हसीना का यूएसए का वीजा रद्द किया है, उसे देखते हुए लगता है कि ब्रिटेन शायद ही शेख हसीना को राजनीतिक शरण देगा। वहीं इस बात की चर्चाएं जोरों पर हैं कि अगर उन्हें ब्रिटेन में शरण नहीं मिली तो क्या होगा, क्या वे भारत में ही रहेंगी या किसी अन्य विकल्प को चुनेंगी?

क्या कहा विदेश मंत्री जयशंकर ने
विदेश मंत्री जयशंकर ने संसद में बयान दिया कि शेख हसीना ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के तुरंत बाद भारत आने की अनुमति मांगी थी और शॉर्ट नोटिस पर भारत ने उनकी सुरक्षित यात्रा की व्यवस्था कर दी थी। इससे पहले उन्होंने मंगलवार को सर्वदलीय बैठक में कहा कि शेख हसीना सदमे में हैं। सरकार बात करने से पहले उन्हें कुछ समय दे रही है। वे भविष्य को लेकर खुद फैसला लेंगी। 

ब्रिटिश सरकार ने दिया ये जवाब
शेख हसीना के साथ नकी छोटी बहन शेख रेहाना भी हैं, जो ब्रिटेन की नागरिक हैं। वहीं उनकी भतीजी शेख रेहाना की बेटी ट्यूलिप सिद्दीक ब्रिटिश संसद की सदस्य हैं और ट्रेजरी की आर्थिक सचिव तथा हैम्पस्टेड और हाईगेट से लेबर सांसद हैं। उसके बाद माना जा रहा था कि ब्रिटेन उन्हें आसानी से राजनीतिक शरण दे देगा। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेरते उन्हें किसी भी तरह का कानूनी संरक्षण देने से इनकार कर किया है। ब्रिटिश सरकार ने शेख हसीना से कहा है कि अगर उनके खिलाफ कोई कानूनी-कार्यवाही शुरू होती है, तो ब्रिटेन उनका बचाव नहीं करेगा। जिसके बाद शेख हसीना ने दूसरे विकल्पों पर भी विचार करना शुरू कर दिया है। वैसे तो शेख हसीना की बेटी, सैमा वाजेद विश्व स्वास्थ्य संगठन के रीजनल हेड के तौर पर दिल्ली में रहती हैं। हालांकि, इससे उनके लिए कोई रास्ता नहीं खुल सकता, क्योंकि वह एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के लिए काम करती हैं। 

हालांकि ब्रिटिश गृह कार्यालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को शरण या अस्थायी शरण लेने के लिए यूके की यात्रा करने की अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं है। ब्रिटिश नियमों के मुताबिक जिन लोगों को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता है, उन्हें सबसे पहले सुरक्षित देश में शरण लेनी चाहिए- यह सुरक्षा पाने का सबसे तेज तरीका है। वहीं, यह इस बात का संकेत भी है कि उन्हें ब्रिटेन की यात्रा करने की अनुमति नहीं मिल सकती है। इसका मतलब यह भी है कि ब्रिटेन हसीना से भारत में शरण लेने के लिए कह रहा है। 

क्या है राजनीतिक शरण?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के नियमों के तहत कुछ देशों द्वारा राजनीतिक शरण या शरण उन लोगों को दी जाती है, जिन्हें अपने देश में उत्पीड़न का डर रहता है। ब्रिटिश सरकार के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति शरणार्थी के रूप में देश में रहना चाहता है, तो उसे शरण के लिए आवेदन करना होगा। जो लोग अपने देश से भागे हुए हैं और खतरे के चलते वापस जाने में असमर्थ हैं, वे इसे आवेदन करने के पात्र हैं। ऐसे लोगों को प्रवासी या शरणार्थी भी कहा जा सकता है। नियम के तहत एक बार शरण मिल जाने पर, व्यक्ति को अपने देश वापस भेजे जाने से सुरक्षा मिल जाती है। ये शरणार्थी तब तक अपने देश की सरकारों या शासकों की पहुंच से बाहर हैं, जब तक वे ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन नहीं करते। आंकड़ों के मुताबिक ब्रिटेन सरकार ने पिछले वर्ष शरण के लिए 112,000 दावों का निपटान किया था। 

कौन मांग सकता है शरण?
अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत, किसी भी व्यक्ति को 1951 कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने वाले किसी भी देश में शरण के लिए आवेदन करने और वहां तब तक रहने का अधिकार है, जब तक कि अधिकारी उसके दावे का मूल्यांकन नहीं कर लेते। 1951 कन्वेंशन में यह माना गया है कि उत्पीड़न से भाग रहे लोगों को भागने और दूसरे देश में शरण लेने के लिए अनियमित साधनों का उपयोग करना पड़ सकता है। 1951 शरणार्थी कन्वेंशन हर किसी को शरण के लिए आवेदन करने का अधिकार देता है। इसने लाखों लोगों की जान बचाई है। कोई भी देश इससे कभी पीछे नहीं हटा है।

नवाज शरीफ भी रहे थे ब्रिटेन में
ब्रिटेन ने कई देशों के नेताओं, राजनीतिक एजेंटों और यहां तक कि जासूसों को भी राजनीतिक शरण दी है। ब्रिटेन ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक सांसदों, रूसी जासूस अलेक्जेंडर लिट्विनेंको और कई अन्य लोगों को शरण दी है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के अध्यक्ष नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराए जाने के बाद चार साल तक लंदन में रहे। 2019 में भ्रष्टाचार के लिए 14 साल की जेल की सजा काटते हुए पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इलाज के लिए लंदन चले गए थे। यह तब हुआ था जब 2017 में पनामा पेपर्स घोटाले से जुड़े मामले में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आजीवन राजनीति से प्रतिबंधित कर दिया था। शरीफ पिछले अक्तूबर में ही पाकिस्तान लौटे थे

हसीना के पास अन्य विकल्प क्या हैं?
अगर भारत या ब्रिटेन नहीं, तो हसीना आगे कहां जा सकती हैं? हालांकि इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन सूत्रों ने बताया है कि वह स्कैंडिनेवियाई देशों में जाने का विकल्प भी तलाश रही हैं। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि वे रूस या किसी यूरोपीय देश में भी शरण ले सकती हैं। इसके अलावा हसीना के पास एक और विकल्प है, हालांकि यह बहुत ही असंभव है, कि वह बांग्लादेश वापस लौट जाएं। उनके बेटे सजीब वाजेद जॉय पहले ही कह चुके हैं कि वह बांग्लादेश वापस नहीं लौटेंगी। इस बीच, सूत्रों ने यह भी बताया कि हसीना दुबई भी जा सकती हैं। उनके मुताबिक मूल योजना यह थी कि विमान को ईंधन भरने के लिए एक तकनीकी स्टॉपओवर करना था, जो कुछ घंटों का होता है। इसके बाद उन्हें या तो दुबई के लिए उड़ान भरनी थी, जहां से उन्हें अकेले ही लंदन जाना था, या फिर दिल्ली से चार्टर्ड विमान से लंदन जाना था। हालांकि शेख हसीना ने आगे के कार्यक्रम को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है।

हसीना का भारत में रहना क्यों बन सकता है समस्या?
यदि ब्रिटेन हसीना को शरण नहीं देता है, तो भारत के सामने कूटनीतिक दुविधा की स्थिति पैदा होगी कि या तो वह हसीना को देश में रहने दे या उन्हें देश से बाहर जाने दे। अगर भारत सरकार बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री को देश में रहने की अनुमति देती है, तो इससे ये संदेश जाएगा कि भारत एक अपदस्थ नेता का समर्थन कर रहा है। इसके अलावा, यह बांग्लादेश की नई सरकार के साथ संबंधों को मुश्किल बना सकता है। वहां भारत विरोधी लहर पैदा हो सकती है। अगर भारत पड़ोस में अपनी स्थिति को मजबूत रखना चाहता है, तो वह बांग्लादेश को अलग-थलग या नाराज नहीं कर सकता। 

हालांकि, शेख हसीना और उनके परिवार के भारत के पुराने एतिहासिक संबंध हैं। जब 1975 में बांग्लादेश में अशांति के दौरान उनके परिवार की हत्या कर दी गई थी, तब इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें शरण दी थी। इसके अलावा, अपने 15 साल के कार्यकाल में, उन्होंने भारत के सुरक्षा हितों का सम्मान किया औऱ बांग्लादेश का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने दिया है। इसलिए दिल्ली के साथ उनके समीकरणों को देखते हुए, इस समय उन्हें छोड़ना भी आसान निर्णय नहीं होगा।

लाजपत नगर और पंडारा रोड में रहीं थी शेख हसीना
1975 में बांग्लादेश में जब मुजीबुर रहमान नए मुल्क के पहले राष्ट्रपति चुने गए, तो देश की सेना ने बगावत कर दी। 15 अगस्त 1975 की सुबह को कुछ हथियारबंद लड़ाके शेख हसीना के घर में घुसे और उनके माता-पिता और भाईयों समेत परिवार के 17 सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया। जिस वक्त राष्ट्रपति आवास पर यह सब हो रहा था, तब शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और बहन शेख रिहाना के साथ यूरोप में थीं। 1975 से 1977 तक शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां के साथ भारत यहां रही थीं। शेख हसीना पहले रिंग रोड की इस कोठी में और फिर पंडारा रोड में शिफ्ट हो गई थीं। जिसके बाद उन्होंने लाजपत नगर-3 की कोठी नंबर-56 को किराए पर लिया गया था, जिसमें अब होटल डिप्लोमेट रिजेंसी चल रहा है। उनके दिल्ली प्रवास को इतना गुप्त रखा गया था कि उनके पति वाजिद मियां, मिस्टर मजूमदार और शेख हसीना मिसेज मजूमदार बनकर रहीं। शेख हसीना ने भारत आने की बात इंदिरा गांधी को बताई थी, जिसके बाद भारत सरकार ने उनके रहने का प्रबंध किया था। हसीना के पति वैज्ञानिक थे, उन्हें नई दिल्ली में स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई। जहां उन्होंने सात साल तक काम किया। भारत में छह साल रहने के बाद 17 मई, 1981 को शेख हसीना अपने वतन बांग्लादेश लौट गई। उनके समर्थन में लाखों लोग एयरपोर्ट पहुंचे थे। बावजूद इसके उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल हुई। आखिरकार वे 1996 में सत्ता में आईं और पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं।    

भारत ने दी थी दलाई लामा को शरण  
हालांकि भारत ने 30 मार्च, 1959 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के आदेश पर दलाई लामा को शरण दी थी। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने 2013 में माले स्थित भारतीय उच्चायोग में शरण ली थी। इससे पहले मालदीव के पूर्व उपराष्ट्रपति अहमद अदीब अब्दुल गफूर ने भी भारत में राजनीतिक शरण मांगी थी। उन्हें 2019 में मालदीव पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने उन्हें वापस मालदीव भेज दिया था। गफूर नौ चालक दल के सदस्यों के साथ तमिलनाडु में एक मालवाहक जहाज से पहुंचे थे। उन्हें जहाज से उतरने की अनुमति नहीं दी गई और विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों ने जहाज पर उनसे पूछताछ की थी।

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