Saturday, November 30, 2024
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Home बेटे को ‘गुडबाय’ कहने के लिए उम्र कैदी पिता को मिली 10 दिनों की परोल, जानें पूरा केस

बेटे को ‘गुडबाय’ कहने के लिए उम्र कैदी पिता को मिली 10 दिनों की परोल, जानें पूरा केस

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मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी को बेटे को ‘गुडबाय’ कहने के लिए 10 दिनों के लिए जेल से छुट्टी दी है। नौ साल से जेल में बंद कैदी को हत्या के मामले में यह सजा मिली है। बेटा दो साल के लिए पढ़ाई के खातिर ऑस्ट्रेलिया जा रहा है। लिहाजा कैदी ने जेल अधीक्षक और कलेक्टर से 30 दिन की परोल (छुट्टी) मांगी थी। निर्णय लेने में बेरुखी से परेशान कैदी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सरकारी वकील हितेन वेणेगांवकर ने तर्क दिया था कि बेटे का विदाई समारोह उन आधारों में शामिल नहीं, जिसके लिए परोल देने का प्रावधान है। सिर्फ दादा-दादी, माता-पिता, जीवन साथी और बेटा-बेटी जैसे करीबी रिश्तेदारों की मौत के लिए आपात परोल देने का नियम है। यह नियम बेटा-बेटी और भाई बहन की शादी में भी लागू होता है। प्राकृतिक आपदा की स्थिति में परिवार के सहायता के लिए भी परोल का प्रावधान है। मामला कोर्ट में है, इसलिए कलेक्टर ने निर्णय नहीं लिया है।

‘दुख की तरह खुशी भी एक भावना’

जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजूषा देशपांडे की बेंच ने कहा कि कैदी के बेटे को ऑस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिल रहा है। हम महसूस करते हैं कि यह एक खुशी का क्षण है। कैदी को इस पल से दूर नहीं रखा जाना चाहिए। एक पिता होने के नाते यह उसके लिए गर्व का विषय है। वहीं बेटा भी पिता से मिली शुभकामनाओ के साथ विदाई पाने का हकदार हैं। दुख की तरह खुशी भी एक भावना है। यदि दुख बांटने के लिए कैदी को परोल दी जा सकता है, तो खुशी के पल साझा करने के लिए उसे छुट्टी क्यों नहीं दी जा सकती है।

‘जेल के बूरे जीवन के प्रभाव से बचाने परोल का नियम’

बेंच ने आगे कहा कि कैदी को जेल के जीवन के बुरे प्रभाव से बचाने के उद्देश्य से परोल और फर्लो का नियम बनाया गया है, ताकि परिवार और बाहरी दुनिया से उसका जुड़ाव बना रहे। मानवतावादी यह दृष्टिकोण कैदी की जीवन के प्रति रुचि पैदा करता है। दोषी पाए जाने के बावजूद एक कैदी किसी का पिता, पति और बेटा होता है। वर्तमान में कैदी जिस अकास्मिक स्थिति का सामना कर रहा है, उस स्थिति से निपटने के लिए नियमों का अभाव है, सिर्फ इसलिए उसे राहत से वंचित नहीं किया जा सकता है। अतीत में जब भी कैदी को परोल दी गई है। वह समय पर जेल में वापस लौटा है।

नोएडा में रहता है बेटा

सिलवासा जेल में बंद कैदी के बेटे को पढ़ाई के लिए 36 लाख रुपये की जरूरत है। यदि कैदी को परोल दी जाएगी तो वह न सिर्फ बेटे के विदायी समारोह में शामिल हो सकेगा बल्कि वह उसके लिए पैसों की व्यवस्था कर सकेगा। कैदी के बेटे को 22 जुलाई को ऑस्ट्रेलिया में ‘मास्टर ऑफ डेटा साइंस प्रोग्राम’ एडमिशन के लिए रवाना होना है। इसे देखते हुए बेंच ने कैदी को 12 जुलाई से 22 जुलाई के लिए परोल दी है। इसके लिए उसे 25 हजार रुपये का मुचलका और एक जमानतदार देना होगा। कैदी का बेटा नोएडा जिले में रहता है, इसलिए उसे इलाके के पुलिस स्टेशन में एक दिन छोड़कर शाम पांच बजे से 6 बजे के बीच पुलिस स्टेशन में हाजरी लगाने का निर्देश दिया है।

कृष्णा शुक्ला

लेखक के बारे में

कृष्णा शुक्ला

खबरों से लगाव ने कृष्णा शुक्ला की 2007 में मुंबई नवभारत से पत्रकारिता की शुरुआत कराई। 2011 में दैनिक भास्कर के मुंबई ब्यूरो में 12 साल की सेवा ने पत्रकारिता को पहचान दिलाई। अप्रैल 2023 से नवभारत टाइम्स के जरिए पहचान की परीक्षा जारी है। कोर्ट रिपोर्टिंग से विशेष प्रेम है। कृष्णा को साहित्य, मनोविज्ञान और दर्शन की किताबों को पढ़ने में रुचि है।… और पढ़ें

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