न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पटना Published by: आदित्य आनंद Updated Tue, 02 Jul 2024 12:39 PM IST
Pashupati Paras : बड़े भाई रामविलास पासवान के दिवंगत होने के बाद पशुपति कुमार पारस ने एक तरह से भतीजे चिराग पासवान के कॅरियर पर विराम लगा दिया था। लेकिन, अब चिराग की चमक के आगे पारस फीके पड़ गए। राष्ट्रीय राजनीति से हवा हो गए।
प्रिंस राज, जेपी नड्डा और पशुपति पारस। – फोटो : Social Media
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लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रीय) के नेता अब भी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान के खिलाफ आग उगल रहे हैं। वैसे, वजह वाजिब है। चिराग पासवान ने लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार की पांच सीटों पर प्रत्याशी दिए और पांचों जीत गए। चिराग से लड़ने के फेर में लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रीय) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस ने आव देखा न ताव और केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देकर बैठ गए थे। जब कहीं बात नहीं बनी तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में ही रहने का एलान भी किया। लेकिन, अब समय चिराग पासवान का है। केंद्र में वह मंत्री हैं। चाचा पशुपति कुमार पारस बाहर हुए तो अब बाहर ही हो गए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से राज्यसभा जाने का सपना और दावा, दोनों बिखर गया। लोकसभा चुनाव होने के कुछ दिन पहले केंद्र में मंत्री थे। चुनाव के दिन तक सांसद थे। अब, कुछ नहीं बचे। भाजपा ने अपने कोटे का राज्यसभा वाला टिकट उपेंद्र कुशवाहा को दे दिया है।
समय को नहीं समझ सके पारस, खुद चमक उतारी
बड़े भाई दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को हाजीपुर लोकसभा सीट पर 2024 में चुनाव के लिए नहीं उतरने देने की जिद ठान पशुपति कुमार पारस ने खुद ही पैरों में कुल्हाड़ी मार ली। पारस ने राजग में सीट बंटवारे तक चिराग से समझौता नहीं करते हुए एनडीए सीट शेयरिंग की घोषणा के बाद केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। दरअसल, वह समय को नहीं समझ नहीं सके और न ही भारतीय जनता पार्टी के हावभाव को। वह समझ नहीं सके कि भाजपा ने एक समय चिराग पासवान की जगह पशुपति कुमार पारस को तवज्जो इसलिए दी थी कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुरा न मान जाएं। 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाईटेड को विधानसभा में तीसरे पायदान पर पहुंचाने में चिराग की बड़ी भूमिका थी, जिसके कारण एनडीए में चिराग का रहना मुश्किल था। मंत्री बनना तो असंभव ही था। ऐसे में रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई जगह उनके भाई पशुपति पारस को मिल गई थी। मोदी 2.0 में मंत्री बनने पर पारस को हमेशा ही लगता रहा कि भाजपा के लिए वह चिराग पासवान से ज्यादा खास हैं। इस भ्रम ने उन्हें बर्बाद कर दिया।
महागठबंधन का रुख करना बेकार गया तो लौटे, मगर हाथ खाली
वह हाजीपुर लोकसभा सीट पर उतरने की अपनी जिद पर कायम रहे और भाजपा ने इस सीट के लिए उनके भतीजे चिराग पासवान को पक्का कर दिया। पशुपति पारस तब भी यह नहीं समझ सके। जिद पर कायम रहे। राजग के सीट बंटवारे में किनारे होने पर पारस ने आव देखा न ताव, केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद वह बिहार आकर लोकसभा चुनाव में सीटों के लिए महागठबंधन के ऑफर का इंतजार करते रहे, लेकिन भाव नहीं मिला। हारकर पारस ने वापस राजग के प्रति आस्था जताई। एक के बाद एक, कई प्रेस कांफ्रेंस किए। पुरानी तस्वीरें शेयर कीं। राजग की चुनावी जनसभाओं में भी रहे। लोकसभा चुनाव की गरमाहट के बीच अप्रैल में उन्होंने कहा कि भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का भरोसा दिलाया है। लेकिन, मंगलवार को वह भरोसा और दावा- दोनों हवा हो गए। राजग ने भाेजपुरी अभिनेता पवन सिंह के हाथों वोट काटे जाने से काराकाट लोकसभा सीट गंवाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा का टिकट दे दिया।
करियर खत्म या कुछ विकल्प बच रहा
पशुपति कुमार पारस अपने बड़े भाई रामविलास पासवान के करीब थे। उन्हीं के बेटे से रार लेकर पारस अब परेशान हैं। वह अब राजग में बने रहते हैं तो 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपने लिए उम्मीद लगा सकते हैं। दूसरी तरफ महागठबंधन में जाने का विकल्प तो है, लेकिन ऐसा करना शायद बेकार जाएगा क्योंकि लोकसभा चुनाव में राजग से नाता तोड़ने के लिए वह लालू यादव और तेजस्वी यादव के भरोसे ही बिहार आए थे। लालू-तेजस्वी ने महागठबंधन के सीट बंटवारे में उन्हें अपने साथ नहीं माना, जिसके बाद विकल्पहीन होकर पारस ने वापस राजग के प्रति आस्था जताई थी। चाणक्य इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “पारस की एक गलती या जिद के कारण उनके भतीजे प्रिंस सहित उनके साथ रहे तमाम सांसदों का करियर खराब हो गया। ऐसे में पारस को अब उन अपनों से भी झटका लगा तो कोई अजूबा नहीं। संभव है कि यह सब देखते हुए पारस राजग में कायम रहें और बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी करें।”
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