विजय कुमार गुप्ता Published by: शिव शरण शुक्ला Updated Sun, 28 Apr 2024 04:53 AM IST
महाराष्ट्र का बीड लोकसभा क्षेत्र मराठा आंदोलन में सुलगता रहा है। भाजपा के दिग्गज नेता रहे दिवंगत गोपीनाथ मुंडे के गढ़ में उनकी बड़ी बेटी पंकजा मुंडे मैदान में हैं। उनके सामने मराठा प्रत्याशी है। इसलिए यह सीट मुंडे परिवार ही नहीं, बल्कि भाजपा के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है।

ग्राउंड रिपोर्ट। – फोटो : amar ujala
विस्तार
दस साल से सांसद रही बहन प्रीतम मुंडे की जगह भाजपा की पंकजा मुंडे को अपने राजनीतिक विरोधी रहे भाई का साथ मिल गया है, लेकिन कमल खिलाने के लिए कुछ कांटे सहन करने पड़ रहे हैं। 2009 से यह सीट भाजपा के पास है। आरक्षण आंदोलन के कारण मराठा वोटों के ध्रुवीकरण से बचीं और ओबीसी वोटों का बंटवारा नहीं हुआ तो ही दिग्गज नेता रहे दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बेटी संसद की दहलीज पार कर पाएंगी। पंकजा जीतीं तो पहली बार संसद पहुंचेंगी। वहीं, भाजपा की लगातार चौथी जीत होगी। यहां भाजपा नहीं, प्रीतम के खिलाफ कुछ एंटी इंकम्बेंसी थी, जिसके चलते उनका टिकट काटकर पंकजा को उतारा गया है।
2014 में गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु के बाद पंकजा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन, भाजपा ने प्रीतम मुंडे को आगे किया। 2014 में सहानुभूति लहर में वह सात लाख वोटों से जीतीं। पर, 2019 में जीत का अंतर एक लाख 68 हजार रह गया। पंकजा ने 2014 के विधानसभा चुनाव में चचेरे भाई व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के धनंजय मुंडे को बड़े अंतर से हराया, पर 2019 में उन्हीं से हार गईं। इसके बाद उन्हें भाजपा ने राष्ट्रीय सचिव और मध्य प्रदेश का प्रभारी बनाया, तो वह प्रदेश की राजनीति से दूर हो गईं। अब धनंजय अजीत पवार की राकांपा में हैं, जिसके साथ भाजपा ने महायुति गठबंधन बनाया है। पंकजा को केंद्र में भेजने से धनंजय के लिए भी विधानसभा का रास्ता साफ हो जाएगा। इसलिए, वह पूरी ताकत से बहन को जिताने में जुटे हैं। यहां मुख्य मुकाबला राकांपा (शरद पवार) के बजरंग सोनवणे से है। महाविकास अघाड़ी ने यह सीट पवार गुट को दी है। वंचित बहुजन अघाड़ी (वीबीए) के अशोक हिंगे भी मैदान में हैं, पर उनका प्रभाव नहीं है। खुद को धरतीपुत्र बताने वाले बजरंग सोनवणे कहते हैं कि सहानुभूति के कारण प्रीतम जीतती रहीं, लेकिन जनता से दूर रहीं। सांसद निधि का पूरा पैसा खर्च नहीं किया। पेयजल योजनाओं, सड़कों व रेल लाइनों पर ध्यान नहीं दिया। पंकजा भी हार के बाद इलाके से दूर हो गईं।
पानी न उद्योग…बेरोजगारी भी
बीड सूखाग्रस्त इलाका है। पानी न होने से कपास, ज्वार और बाजरा की खेती होती है, जो मानसून पर निर्भर है। युवा बिल्डर नवनाथ काकड़े कहते हैं, वोट जातीय आधार पर ही पड़ेंगे, मुद्दों की बात कौन करता है। पानी का संकट जस का तस है। यहां का तो नाम ही बीड बिहार पड़ गया है, यानी पिछड़ा हुआ। उद्योग न होने से बेरोजगारी बहुत है।
ध्रुवीकरण पर सबकी नजर
ओबीसी दर्जा मांग रहे मराठों के आंदोलन के समय हिंसा व आगजनी हुई थी। इसलिए मराठे ज्यादा मुखर हैं। इस लोकसभा सीट के छह में पांच विधायक महायुति के हैं और उनमें भी चार मराठा हैं। इसके बावजूद भाजपा को आम मराठा मतदाताओं के रुख को लेकर उलझन बनी हुई है। वरिष्ठ पत्रकार सीआर पटेल कहते हैं कि मराठा आरक्षण आंदोलन में हादसे का शिकार हुए विनायक मेटे की पत्नी को राकांपा (शरद पवार) ने उम्मीदवार नहीं बनाया, नहीं तो 7 लाख मराठा वोटों का ध्रुवीकरण पक्का था। अब मराठा वोट बंट सकते हैं। आंदोलन के नेता मनोज जारांगे पाटिल का खासा प्रभाव यहां है। मराठों के बाद 4.5 लाख वोटों वाला वंजारा समुदाय है, जिससे मुंडे आती हैं। अन्य ओबीसी भी भाजपा के साथ आ सकते हैं। मराठा वोटों का ध्रुवीकरण हुआ, तो उससे ज्यादा ओबीसी का होगा। ढाई लाख मुस्लिम व दलित वोट बैंक राकांपा की ओर झुक सकता है।
मोदी…पंकजा ताई…और आरक्षण
मराठा आरक्षण के मसले को छोड़ दें तो सियासी दलों के पास कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। लोग खुल कर बोलते हैं। भीषण गर्मी में खेत के किनारे झोपड़ी में बैठी इंदुबाई और पति दशरथ आपा ससाने को नहीं पता कि कौन पार्टी या प्रत्याशी है। यह जरूर बताते हैं कि मोदी ने गैस दिलवा दी। पर, यह भी कहते हैं कि फसल के नुकसान का पैसा नहीं मिला। कोई प्रत्याशी मिलने आया, पूछने पर कहती हैं, हां, पंकजा ताई। कंकालेश्वर मंदिर में शिव पूजा करने आए दिलीप फटाले से पूछा कि हवा किसकी है, तो मराठी में दिए गए जवाब में हम इतना ही समझ सके- मोदी, पंकजा। गेवराई विधानसभा क्षेत्र के भारत देवकर कहते हैं, हम मराठा हैं, हमारा आरक्षण कहां है, हम सत्ता में बैठे लोगों को वोट नहीं देंगे, हम बजरंग को वोट देंगे।