Wednesday, November 27, 2024
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ईवीएम पर संदेह, हास्यास्पद यह है कि कई राजनीतिक दल के नेता EVM के जरिये ही सत्ता तक पहुंचे

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एक लंबे समय से यह देखने में आ रहा है कि जब भी चुनाव आते हैं, तब कुछ राजनीतिक दल, गैर-राजनीतिक संगठन और स्वयंभू तकनीकी विशेषज्ञ इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम के खिलाफ मुहिम छेड़ देते हैं। जनहित याचिकाओं को एक उद्योग में बदल चुके कुछ वकील भी इस मुहिम में शामिल होकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं।

ईवीएम पर संदेह जताने वाले कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग करते रहते हैं। यह और कुछ नहीं, देश को बैलगाड़ी युग में ले जाने वाली मांग है। यह मांग इससे भली तरह परिचित होने के बाद भी की जाती है कि जब मतपत्रों से चुनाव होते थे, तब किस तरह मतपत्र के साथ मतपेटियां भी लूटी जाती थीं।

बंगाल में पंचायत चुनावों के दौरान तो अब भी ऐसा होता है। मतपत्रों से चुनावों के दौर में केवल धांधली ही नहीं होती थी, बल्कि चुनाव नतीजे आने में भी अच्छा-खासा समय लगता था। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम पर सवाल उठाने वालों को यह याद दिलाया कि उसे पता है कि जब मतपत्रों से चुनाव होते थे, तब क्या होता था।

हालांकि ईवीएम को लेकर उठने वाले सवालों का समाधान करने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाए गए और इसी के तहत अब मतदाताओं को सात सेकेंड तक वीवीपैट यानी एक पर्ची दिखती है, जिससे उन्हें पता चलता है कि उनका वोट उनकी पसंद के प्रत्याशी को गया। यह पर्ची स्वतः एक बाक्स में चली जाती है। इसके बाद प्रत्येक विधानसभा के किन्हीं पांच मतदान केंद्रों की वीवीपैट का मिलान ईवीएम से मिले नतीजों से किया जाने लगा।

अभी तक इसमें कोई गड़बड़ी नहीं मिली, लेकिन इसके बाद भी यह मांग की जा रही है कि सभी वीवीपैट का मिलान ईवीएम से मिले नतीजों से किया जाए। यह और कुछ नहीं पिछले दरवाजे से मतपत्रों के युग में लौटने की मांग है। सभी वीवीपैट यानी समस्त वोटों की गिनती करने से चुनाव नतीजे आने में 10-12 दिन तो लगेंगे ही, अतिरिक्त संसाधन भी खर्च होंगे।

एक मांग यह भी की जा रही है कि वीवीपैट मतदाताओं को स्पर्श करने और उन्हें ही बाक्स में रखने की सुविधा दी जाए। इसका कोई मतलब नहीं, क्योंकि जितना मानवीय दखल बढ़ेगा, गड़बड़ी होने की आशंका उतनी ही बढ़ेगी। कहना कठिन है कि ईवीएम पर जो संदेह जताए गए, उन पर सुप्रीम कोर्ट किस नतीजे पर पहुंचता है, लेकिन इतना अवश्य है कि शक का कोई इलाज नहीं। समस्या यह है कि कुछ लोगों ने ईवीएम पर उलटे-सीधे सवाल उठाने और अफवाहों को हवा देने को अपना पेशा बना लिया है। हास्यास्पद यह है कि इनमें वे राजनीतिक दल भी हैं, जो ईवीएम के जरिये हुए चुनावों के जरिये ही सत्ता तक पहुंचे हैं।

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